Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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गोष्ठी १ संक्षिप्त विवरण
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जहाँ तक भारतीयदर्शन है, अध्यात्म उसकी विशेषता है वह विशिष्ट व्यक्ति का सृजन करता है । इसलिए उस विशिष्टता में एक जाति का उतना स्थान नहीं हैं, साधारण आदमी की प्रतिष्ठा के स्थान नहीं है । इसलिए जब हम साधारण की प्रतिष्ठा करेंगे, तो उसके अन्दर आवश्यक होगा कि आदमी के रिश्ते, समाज के रिश्ते, और समाज और आदमी की मर्यादा के रिश्ते और उसके साथ-साथ जड़ और चेतन के रिश्तों के साथ मसला हल करें ।
मानवतावादी चिन्तक प्रो० डॉ० देवराज (का० हि० वि० वि० ) ने कहायह जो प्रश्न प्रकारान्तर से गोष्ठी में उठाया गया है कि नवीन दर्शन की परिकल्पना होनी चाहिए। यह चिंता का विषय हो भो सकता है, नहीं भी । कोई
ये दर्शन की जब तक आवश्यकता महसूस न की जाय तबतक उसकी कामना क्यों की जाय । हमारे हिन्दी साहित्य में कुछ समय तक यह आन्दोलन चलता रहा कि इसमें नयापन होना चाहिए । लेकिन अपने में नवीनता मात्र कोई अच्छी चीज होती है या ऊँची चीज होती है. ऐसा किसी जिम्मेदार आदमी ने शायद नहीं कहा है । नवीनदर्शन इसलिए बनाने की चेष्टा नहीं की जाती कि हमें मौलिक कहलाने की इच्छा है या नवीनता का मोह है । बाल्क नवीनदर्शन परिस्थितियों से उत्पन्न होता है और परिस्थितियों की कुछ आवश्यकताएँ होती है ।
यह जो निबन्ध पढ़े गये हैं, इनमें से कुछ प्रश्न उठते हैं । उन पर मैं कुछ कहना चाहूंगा। विज्ञान के उदय से जितने परिवर्तन इधर दो-तीन शताब्दियों में हुए हैं, उनके पीछे कारण है । यह किस तरह से हुआ है, थोड़ा सा बतलाना आवश्यक लगता है ।
श्रद्धा की दृष्टि से देखें
मध्ययुग था, उसमें प्राचीन विचारकों में
विज्ञान के उदय ने जो पहला काम यूरोप में किया, वह यह था कि उसने मनुष्य को अपने में आस्था दो, आत्मविश्वास दिया । उससे पहले यही नहीं यूरोप में भी दो बातें मानी जाती थी । एक यह कि प्राचीन विचारक बड़ी जाते थे और उनके प्रति बड़ा आदरभाव था । दूसरी यह जो बाईविल, धर्म और बाईबल के संस्थाओं के प्रति वड़ा मोह था। यूनान के जो विचारक थे – अरस्तू, प्लेटो, इनके प्रति बड़ा आदर भाव था । यह समझा जाता था कि जो कुछ काम की बात कही जानी थी, वह पहले के लोग कह गये हैं । जो कुछ ज्ञान-विज्ञान की, जीवन-विधि की अच्छी चीजें थी, हम लोग इससे प्रेरणा लें। हम स्वयं न कुछ बढ़ा सकते हैं, या हैं या ऊँचा काम कर सकते हैं ।
कही जा चुकी है । अच्छा कर सकते
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परिसंवाद - ३
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