Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
View full book text
________________
३३२
भारतीय चिन्तन परम्परा को नवीन सम्भवनाएं
हुआ। दस हजार सैनिक ले कर के बाबर आया था, राना साँगा की सेना दो लाख थी । प्रातः काल से शाम तक के युद्ध में भारत के भाग्य का निबटारा हो गया । क्यों ? क्योंकि गन-पाउडर का आविष्कार अफगानिस्तान में पहुँच चुका था । वह तोपखाना ले कर आया और ध्वस्त कर दिया सांगा की सेना को । एक बच्चा भी कह सकता था युद्ध के पहले ही कि युद्ध का परिणाम क्या होने जा रहा है। लेकिन ये जो भारतीय सैन्य विशेषज्ञ थे उनके दिमाग में यह नहीं आया ।
एक दूसरी बात आपको बताए,
मुहम्मद साहब के समय से इस्लाम का बड़ा प्रचार हुआ। लेकिन संयोग से इस्लाम का जब भारत में प्रवेश हुआ तो दिग्विजय उसने किया, इसमें संदेह नहीं, लेकिन इस्लाम को भी वही हवा लगी जिससे कि हिन्दु राजा ग्रस्त थे । उसके सेना में भी हाथी आदि की उसी प्रकार की व्यवस्था की गई जिसके कारण अहमदशाह अब्दाली ने और उससे पहले जो आए वह जीतते चले गये ।
इस तरह यह नहीं कहना चाहिए कि केवल दर्शन इसका कारण था । बल्कि ऐसा लगता है कि नये ज्ञान के प्रति विभिन्न संदर्भों में यह जो ज्ञान के किसी प्रकार की वृद्धि हो रही है; इन सबका अपने देश में अभाव रहा । जवाहरलालजी ने एक बात बहुत अच्छी कही थी । अकबर के समय इंग्लैण्ड से शायद कोई आया था । उसने अकबर को एक घड़ी भेंट की । अकबर ने घड़ी की तो बड़ी प्रशंसा की । लेकिन जवाहरलाल जी ने कहा कि अकबर के बुद्धि में यह नहीं आयी कि यहाँ भी वह कारखाना खोल देता ।
प्रख्यात कलामर्मज्ञ प्रमोदकुमार गुप्त (वाराणसी) ने कहा- मैं अपने जिस जमाने में जी रहा हूँ, और जिस जमाने में जी कर जो कठिनाई जीवन के प्रति महसूस कर रहा हूँ, उसको मैं थोड़ा कहूंगा । और नये दर्शन की क्या सम्भावनाएँ हैं, उसमें जो मैं समझता हूँ, उस पर थोड़े-थोड़े इशारे करने की कोशिश करूँगा ।
आध्यात्मवादी दर्शनों का दौर
मैं समझता हूँ कि दर्शन की दुनिया में जब तक चला था तब तक कोई मौलिक परिवर्तन आदमी के दिमाग में नहीं आया था । झगड़े यानि परिवर्तन उस समय आये, जब जड़वादी दर्शन में आदमी, साधारण आदमी की प्रतिष्ठा की लड़ाई को सामने रखा । यही से सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन की लड़ाई शुरू हुई ।
परिसंवाद - ३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org