Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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गोष्ठी का संक्षिप्त विवरण
३३५ रचकर व्यवहार के बौद्धिक विवेचन से दूर हट जाता है इन दोनों दूरियों को हदाने का मार्ग आधुनिक परिप्रेक्ष के चिंतक कर सकते हैं।
प्रो. रमेशचन्द्र तिवारी ने कहा-दर्शन को अब पुरानी ऐतिहासिक मान्यताओं के परिप्रेक्ष्य में न देख कर परिवर्तित परिस्थितिओं के अनुसार नये सिद्धान्त प्रस्थापित करने चाहिए नहीं तो आज के युग में पुराने आधार का चिंतन दमघोटू जैसा लगेगा।
पं० केदारनाथ ओझा ने कहा-चाहे जितने आरोप भारतीय दर्शन पर लगाये जांय पर ईशावास्योपनिषद् का 'तेन त्यक्तेन भुंजीथा' : का यदि आधुनिक सन्दर्भ ले तो मैं मानता हूँ कर्म, सन्तोष, वैराग्य आदि का आज भी मूल्य है आज भी मानव मन में जो शुचिता के भाव उजागर होते हैं वह हमारे इस पुराने चिंतन के प्रतिफल हैं अत एव इनको परलोकपरक ही क्यों माना जाय, इसे लोकपरक आचरण से क्यों नहीं बनाया जाता है।
प्रो. देवराज ने कहा-मानव पुरुषार्थों का चिंतन करता है पर उन पुरुषार्थों का चिंतन किया जाय जो जीवन यात्रा के उपयोगी हों तथा व्यक्ति को परिष्कृत एवं समृस करने वाले गुणात्मक उत्कापकर्ष के विधायक हों। सत्यान्वेषण के साथ मैतिक मूल्यों का विवेचन भी दर्शन का काम है। वंशपरम्परा से ही नहीं परिवेश से भी अधिकारी एवं अधिकार का निर्णय किया जाय। ऊँचे माने जाने वाले आज से सन्दर्भित मूल्य छिपा कर नहीं, प्रगट रूप में प्रगट किये जांय । क्या इन पर आज विचार किया जा सकता है।
प्रो० कृष्णनाथ ने कहा-आज के बदले परिवेश में असमानता को केवल ब्रह्म की भाव समानता' से नहीं हटाया जा सकता। आज ‘पण्डितः समदर्शिनाः' ही महो, समवर्तिनः भी बने। सत्य के अनुसार प्रमाण बनना चाहिए तर्क के अनुसार सत्य नहीं खड़ा होना चाहिए।
प्रो० इन्द्रजीत सिंह ने कहा--टायन्वी के अनुसार आज भारतीय दर्शन विश्व दर्शन का आधार बन रहा है क्योंकि यह विवेक पूर्ण एवं समस्याओं का समाधान कारक है । इसके अध्यात्म के चमत्कार में जो समाधान है उसको व्यवहार परक बनाना से सम्पूर्ण समस्याओं का समाधान सम्भव है।
परिसंवाद-३
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