Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाए हैं पर भारतीय दार्शनिक तो शान्तिपूर्वक जीवन यापन के लिए प्रयत्नशील बनकर शान्ति को ही लक्ष्य मान लेते हैं इस सन्दर्भ में यहाँ का सम्प्रदायिक दार्शनिक मात्र अपने सांप्रदायिक विचारों को दुहराता भर है वह समस्याओं के समाधान की चिंता नहीं करता। इसका प्रयत्न होना चाहिए।
प्रो० रमाकन्तत्रिपाठी (अध्यक्ष, दर्शनविभाग, का• हि० वि० वि०) ने कहा-पाश्चात्य देशों में दर्शन की विधि के विषय में उद्देश्य एवं उपयोगिता के विषय में वैचारिक उथल-पुथल है, व्यक्तिवाद, अनुभववाद, वैचारिक प्रयोगवाद, किसी निश्चित लक्ष्य का अभाव, जीवन के विषय में दिशाहीनता आदि पाश्चात्य दार्शनिक जगत् के सामान्य लक्षण हैं। इसके विपरीत भारतीय दार्शनिकों में अज्ञान दूर करने के लिए ज्ञान की खोज जारी है। इस खोज में न केवल जागतिक अनुभव प्रत्युत आ'तपुरुष के अनुभव का भी योगदान है यह उछलकूद नहीं, प्रत्युत जीवन की गम्भीर समस्या है जिसकी खोज के बिना मनुष्य को चैन नहीं है।
पाश्चात्यदार्शनिक वर्तमान जीवन की समस्याओं तक सीमित रहते हैं जब कि भारतीय के लिए जीवनोपरान्त मनुष्य का क्या होता है ? यह मी चिंतन का क्षेत्र है, इसे पाश्चात् लोग धर्म मानते हैं जबकि भारतीय के लिए वह दर्शन भी है। पाश्चात्यविचारक दर्शन को विचार पर अवलम्बित मानते हैं जो विचार में नहीं आता वह दर्शन नहीं है, भारतीय भी विचार को मूल्य देते हैं। पर भारतीय विचार साधन बुद्धि के संस्कारों को परिष्कृत कर शुद्ध बुद्धि के द्वारा सकल अनुभवों का विश्लेषण करते हैं। पाश्चात्य दार्शनिक के विचार क्षेत्र में सुषुप्ति का अनुभव नहीं आता है मात्र जाग्रत का अनुभव ही है। पाश्चात्यदर्शन में ज्ञान की सारी समस्याओं का हल विज्ञान करता है दर्शन केवल उपलब्ध ज्ञान में समन्वय करता है तथा जीवन की दिशा निश्चित करता है। मनुष्य जीवन की समस्याओं का आत्यन्तिक हल कैसे हो इसे आज का दार्शनिक नहीं करता। अतः आज की सार्वभौम समस्याओं के साथ उनके आत्यन्तिक निदान का दर्शन बनना चाहिए।
____ डा. हरिश्चन्द्रश्रीवास्तव (समाजशास्त्रविभाग, का० हि० वि० वि०) ने कहा--जिन्दगी को कैसे बर्दास्त किया जाय ? इसका विश्लेषण दर्शन करता है । दर्शनों में तुलनात्मक दृष्टि महत्त्वपूर्ण है पर सत्य क्या है ? इसकी व्याख्या बहुत कठिन है। वह विचार से परे की चीज जैसी है। अतएव सभी दर्शनों के सत्य भिन्न-भिन्न हैं। उसको विचारों में बांधना कठिन है भारतीयचिंतन के कुछ Arche-types होकर
परिसंवाद-३
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