Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 327
________________ ३०२ भारतीय चन्तन की परम्परा में नवीन सम्भवनाएं इस दृष्टि से अभ्युदय या निःश्रेयस जैसा चुनाव नहीं है। प्राचीन भारतीय चिंतन परम्परा में इन्हें दो भिन्न और जैसे परस्पर विरुद्ध कोटि मान लिया गया है । नचिकेता के सामने यम ने विकल्प रखा है कि अभ्युदय का रास्ता और है, निःश्रेयस का और है। तुम किसे चुनते हो ? मुझे लगता है कि इन दो कोटियों को इतना अलगा दिया गया है कि इ के बीच हिमालय खड़ा हो गया है । जोवन में ये दोनों मिले-जुले आते हैं। प्रश्न अभ्युदय या निःश्रेयस का नहीं है। कितना अभ्युदय, और कितना निःश्रेयस? कब अभ्युदय और कब निःश्रेयस? कहाँ अभ्युदय और कहाँ निःश्रेयस का है ? किसके लिए अभ्युदय और किसके लिए निःश्रेयस का है ? इनका अनुपात देश काल पात्र की प्रकृति, स्थिति और आकांक्षा के हिसाब से स्थिर किया जा सकता है । यह सर्व सर्वत्र सर्वदा एक जैसा नहीं हो सकता। जैसे भारत के लिए कुल ले दे कर अभ्युदय पर जोर दिया जा सकता है। गरीबी इसकी सब समस्याओं की समस्या है। यह सिर्फ बाह्य और आर्थिक नहीं है। इसका आन्तरिक, मानसिक, वैचारिक, रूप भी है। दोनों स्तरों पर, आन्तरबाह्य गरीबी मिटाये बिना अभ्युदय तो नहीं हो सकता, निःश्रेयस भी नहीं सध सकता। आज की दुनिया में या शायद प्राचीन दुनिया में भी, जिसके पाश धन है उसके पास ध्यान और धारणा की शक्ति है। हाँ, पश्चिमी देशों के लिए सामान्य रूप से, अभ्युदय के बजाय निःश्रेयस पर बल दिया जा सकता है। प्रश्न फिर बल-अबल का है। एक या दूसरे के बीच नितान्त चुनाव का नहीं। कितना अभ्युदय, कितना निःश्रेयस? फिर भारत में भी गरीब के लिए एक जैसा अभ्युदय निःश्रेयस का फामूला नहीं चलेगा, गरीब के लिए अपरिग्रह वगैरह सिखाने का बहुत मतलब नहीं। उसके लिए तो रोटी की व्यवस्था जरूरी है। हाँ श्रीमान् के लिए अपरिग्रह जरूरी है। सिर्फ वर्ग का प्रश्न नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी विशिष्ट प्रकृति, परिस्थिति और आकांक्षा है। अभ्युदय और निःश्रेयस का मेल व्यक्ति को अपने मुताबिक बनाने की छूट होनी चाहिए। इस तरह श्रेय-प्रेय का मिश्रण देश, काल, और अन्ततः तो व्यक्ति की जरूरत के मुताबिक बनाने की समस्या है। इसके अलावा, अहिंसा ब्यक्ति और समूह के जीवन के लिए आज जितनी महत्त्व की है उतनी शायद बुद्ध और महावीर और गांधी के काल में भी नही थी। आणविक अस्त्रों की दुनिया में निःशस्त्रीकरण आज के मनुष्य की एक प्रमुख चिन्ता है। हथियार ही नहीं, राज्य की अन्य शक्ति के बढ़ने और संचार और अभिव्यक्ति के साधनों पर राज्य के आधिपत्य के कारण व्यक्ति के अस्तित्व और सम्मान के परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366