Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 330
________________ ३०५ नये जीवन दर्शन की कुछ समस्याएं और सम्भावनाएं दर्शन का साक्षात्कार पहले होगा। उसके कुछ सूत्र आएँगे, फिर भाष्यवगैरह होंगे। व्यवहार में इनकी परख होगी। फिर उसके लायक उसका विश्लेषण का ढाँचा प्रमाणमीमांसा वगैरह बनेगी या पुरानी व्याख्या, मीमांसा कुछ हेर-फेर करके अपना ली जाएगी। पुराने दर्शनों को यह नया दर्शन खारिज नहीं कर सकेगा। हालांकि न यह दावा करेगा कि वह सब पुराना व्यर्थ है, बकवास है, मृषा है, और जो यह नया दर्शन आया है वही असली चीज है, वही सत्य है, पर्याप्त है, तर्क संगत है, परीक्षण में टिकने वाला है इत्यादि । कालक्रम में यह भी देखने का एक दृष्टिकोण बन कर रह जायेगा। फिर भी यह प्रयोग परम्परा को एक अंश तक परिपूरित करेगा। इसलिए भी इसकी आवश्यता है । नये दर्शन की यह सम्भावना कब, कैसे सच होगी ? कहाँ और कौन इसे सच बनाएगा? कोई नहीं जानता। लेकिन इतना तो निश्चित है कि यह काम कोई सामर्थ्यवान मनुष्य ही करेगा, कोई देव या अति-मानव नहीं। ___ मुझे लगता है कि पूरब और पश्चिम में एक सृजनशील अल्पमत नये जीवनदर्शन को जरूरत महसूस कर रहा है। विश्व मन में संशय है। ऊब है, हलांकि हाल में संसार में सब तरह की सत्ता-व्यवस्था की जकड़ ज्यादा मजबूत हो गयी है। नये जीवन दर्शन की खोज कुछ बंध गयी है। स्थिति अन्दर-बाहर बदलती रहती है। इसलिए अगर इसकी जरूरत है तो कोई सृजन हो सकता है । होगा कि नहीं होगा, यह भी कोई नहीं कह सकता। हाँ, होना चाहिए, ऐसा मुझे महसूस होता है । अभी तो इतना ही बस है। परिसंवाद-३ ३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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