Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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महात्मा गान्धी का प्रयोगदर्शन
प्रो. जगन्नाथ उपाध्याय
भारतवर्ष में तत्त्व का अन्वेषण प्रायः स्वरूप साक्षात्कार के उद्देश्य से ही होता है। तुम कौन हो? मैं कौन हैं ? कहाँ से आया हूँ ?--इत्यादि प्रश्नों के समाधान एवं विवेचन के प्रसंग में सृष्टि का भीतरी रहस्य उबुद्ध होता है। अन्तर्जगत् के द्वारा बाह्य जगत् का नियमन तथा इनमें परस्पर कार्यकारणभाव निहित है। ऐसा जानकर एवं 'इन्हीं में मेरा आत्माबद्ध है'--ऐसा अनुभव कर साधक इनसे मुक्ति के लिए उत्तरोत्तर अध्यात्मतत्त्व की ओर उन्मुख होता है। भारतीय समाज भी अपने में पूर्णता लाने के लिए एवं अपने को विस्तृत एवं विशाल बनाने के लिए हमेशा देश, काल आदि की संकुचित सीमाओं का उलंघन करता है, दम्भ, पाखण्ड एवं अज्ञान के बन्धनों को काटता है तथा नूतन निर्माण के लिए नए-नए सत्यों एवं नई-नई श्रद्धाओं का आश्रयण करता है। .
व्यक्ति और समाज दोनों के जीवन में पूर्णता एवं सजीवता उत्पन्न करने के लिए समाजनीति अध्यात्म का अनुगमन करती है। समाज अपने स्वरूप के परिचय के लिए धर्म की अपेक्षा करता है। इसलिए जो धर्म समाज को अपना स्वरूप परिचित कराने में असमर्थ होता है, वह धर्म की कोटि से च्युत हो जाता है। काम ( इच्छाएं और उनकी पूर्ति का प्रयास ) भी मनुष्य जाति के अस्तित्व को सिद्ध करने का प्रमुख साधन है। यह सारी समृद्धि 'काम' द्वारा हो निर्मित है, जिसके लिए पूरा जगत्-चक्र अनिवार्य की तरह प्रतीत होता है। यह सृष्टि समष्टि कर्मों का फल है। व्यक्ति की दृष्टि से यही परिस्थिति कहलाती है। इन परिस्थितियों से व्यक्ति और समाज दोनों का जीवन समानरूप से घिरा हुआ है। इन सबका आधार अध्यात्म है। इसी अध्यात्म के आधार पर व्यक्ति और समाज दोनों के जीवन में समता और समन्वय साधना 'नीतिशास्त्र' कहलाता है। इसीलिए व्यक्तियों को तथा व्यक्तियों के माध्यम से समाज को विभिन्न परिस्थितियों से ऊपर उठा कर अपने वास्तविक
परिसंवाद-३
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