Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
View full book text
________________
सत्य और अहिंसा : गांधी जी की दृष्टि में
प्राधान्य है । विरुद्ध प्रचार के फल स्वरूप ही यह धारणा स्थान प्राप्त करती है। शुद्रागर्भजात महामति विदुर का कहीं भी अपकर्ष महाभारत में प्रदर्शित नहीं है । महाभारत के वैशिष्ट्य में जिन तीन व्यक्तियों की चर्चा है उनमें विदुर का भी स्थान है
विस्तरं कुरुवंशस्य गान्धर्य्या धर्मशीलताम् । क्षतुः प्रज्ञां धृतिं कुन्त्याः सभ्यग् द्वैपायनोऽब्रवीत् ॥ विदुरस्तं तथेत्युक्त्वा भीष्मेण सह भारत। पाण्डु संस्कारयामास देशे परमपूजिते ॥
इससे यह सुस्पष्ट है कि राजपरिवार में विदुर का प्राधान्य था ।
इस प्रसंग में यह मी द्रष्टव्य है कि विदुर का अग्निसंस्कार नहीं किया गया, क्योंकि उन्होंने यति धर्म स्वीकार किया था । नीलकण्ठ ने इस प्रसंग का मार्मिक विश्लेषण प्रस्तुत किया है
शूद्रयौनौ जातानामपि यतिधर्मोऽस्तीति दर्शितम्, I
ज्ञानी को शूद्रयोनि में उत्पत्ति रहने पर मो यतिधर्म विहित है ।
६९
इस विश्लेषण से यह सिद्ध है कि बलिदान और हिंसा, ये सर्वथा भिन्न हैं । बलिदान प्रशस्त है और हिंसा निषिद्ध है । बलिदान अनासक्ति के बिना सम्भव नहीं और अनासक्ति साधन चतुष्टय सम्पत्ति के बिना नहीं हो सकती है ।
महात्मागांधी ने हिंसा का अर्थ परपीड़ा किया है। उन्होंने १९१६ में प्रदत्त व्याख्यान के प्रसंग में कहा था कि अहिंसा का मेरे लिए बड़ा अर्थ है | अहिंसा का वास्तविक अर्थ है कि तुम किसी मनुष्य का चित्त मत दुखाओ और जो मनुष्य तुम्हें अपना शत्रु समझता हो, उसके विषय में भी 'अपने हृदय में कभी कोई बुरा भाव न रखो । लाला लाजपतराय के आरोपों का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा था- मैं जन्म से वैष्णव हूँ बाल्यावस्था से ही मुझको अहिंसा की शिक्षा दी गई है । अहिंसा का अर्थ है अपने शरीर अथवा मन से किसी प्राणी को किसी प्रकार का कष्ट न देना ।
गांधी दर्शन के अनुसार ज्ञान और आचार का समन्वय है । प्रेम करना नहीं वरं उस वृत्ति के कारण सहज रूप में प्रेम प्राप्त करना है। भाव और आचार की एकता
परिसंवाद - ३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org