Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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आधुनिक पाश्चात्यदर्शन की गतिविधि
२५३ इस प्रकार हमको यह जान पड़ता है कि मूल समस्या दर्शन के उद्देश्य और प्रयोजन से सम्बन्धित है। उसी पर दार्शनिक विधि की समस्या अवलंवित है। इसके साथ ही पाश्चात्यों की विचार की क्षमता और सामर्थ्य में विश्वास जुड़ा हुआ है । कुछ दार्शनिक विचार की सीमाओं पर जोर देते हैं परन्तु अधिकांश लोग विचार को अत्यन्त सामर्थ्यदान समझते हैं और उसी का सहारा लेना चाहते हैं। यहाँ तक कहा जाता है कि दर्शन को विचार पर अवलंवित रहना ही है चाहे फल जो भी हो क्योंकि जो विचार में नहीं आता, वह दर्शन नहीं है। यह एक प्रकार की विचार-पूजा है जो पाश्चात्यों में पाई जाती है। अतः विचार करना है कि दर्शन का लक्ष्य क्या होना चाहिए और उसकी प्राप्ति कहाँ तक इस विचार पूजा से सम्भव है। क्या सत्य के जिज्ञासु के लिये विचार पूजा को प्राथमिकता देना ठीक है या सत्य प्राप्ति को। क्या सत्य की प्राप्ति के लिये विचार को त्यागना पड़े अथवा उसे आश्रित का स्थान देना पड़े तो ठीक न होगा? भारतीय दर्शन में विचार को स्थान नहीं प्राप्त है ऐसी बात नहीं है, निराधार स्वतन्त्र विचार दिशाहीन होता है ऐसी यहाँ की मान्यता है । केवल विचार ही करना है, ऐसा यहाँ का आग्रह नहीं है क्योंकि यहाँ के लोग विचार की सीमा को जानते हैं, यही नहीं बल्कि यहाँ यह भी माना जाता है कि विचार की साधन बुद्धि मनुष्य के संस्कारों से प्रभावित होती है और जिस कोटि की बुद्धि होती है उसी कोटि के हमारे विचार होते हैं। अतः बुद्धि का शुद्ध और सत्यनिष्ठ होना आवश्यक है यह बात पाश्चात्य लोग नहीं समझते।
यदि अनुभव को ही विचार की आधारशिला माना जाय तो भी पाश्चात्य दृष्टिकोण संकुचित मालूम पड़ता है क्योंकि वे लोग सन्तों के अनुभव पर विचार करना पसन्द नहीं करते। यही नहीं बल्कि साधारण अनुभव के सभी अंगों पर विचार नहीं करते। उदाहरणार्थ सुषुप्ति का अनुभव । इस अनुभव के विश्लेषण से किन सत्यों की प्राप्ति हो सकती है, इस पर वे विचार नहीं करते। इसे केवल अज्ञान की अवस्था मानकर छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति इन तीनों पर विचार नहीं किया जाता है। केवल जाग्रत अवस्था में जो उपलब्धि है, उसी को आधार बनाया जाता है।
हमको ऐसा जान पड़ता है कि पाश्चात्य विचारकों पर विकासवाद के सिद्धान्त का और विज्ञान की प्रगति का विशेष प्रभाव पड़ा है। विकासवाद के सिद्धान्त से यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि मानव का क्रमशः विकास होता जाता रहा है। अतः इस समय के विचार प्राचीनकाल के विचारों से श्रेष्ठ हैं। विज्ञान की प्रगति ने
परिसंवाद-३
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