Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
(घ) नित्यतावाद (शाश्वतवाद) उच्छेदवाद, मध्यमवाद (ङ) आत्मवाद, अनात्मवाद, ईश्वरवाद, अनीश्वरवाद
(४) लक्ष्य के आधार पर-मुख्य लक्ष्य-ऐहिकसुख, स्वर्ग, मोक्ष, निर्वाण भाग्यवर्द्धक आदि -गौणलक्ष्य-तत्त्वज्ञान, शास्त्रार्थ में विजय, प्रतिभा-विकास । समाजसुधार,
नवनिर्माण (५) प्रमाण के आधार पर-(क) प्रमाणसंख्या-एक प्रमाण, दो प्रमाण, तीन प्रमाण, चार प्रमाण, अनेक प्रमाण
(ख) प्रमाण सम्प्लव-प्रमाणव्यवस्था (ग) स्वतः प्रामाण्य, उभय प्रामाण्य, सापेक्षवाद (स्याद्वाद)
(६) कार्यकारण के तथाभूत आधार सिद्धान्तों के आधार पर-आरम्भवाद, सन्तानवाद, परिणामवाद, विवर्तवाद ।
(७) साधन के आधार पर-कर्मप्रधान, ज्ञानप्रधान, भक्तिप्रधान, समन्वयात्मक, समुच्चयात्मक।
(८) परम्पराभेद के आधार पर भारतीय परम्परानुसारी, पाश्चात्यपरम्परानुसारी, तुलनात्मक, स्वतन्त्रचिन्तनात्मक ।
यह संकलन एवं दिग्दर्शन मात्र हैं। इसका विवेचन, संशोधन, संवर्धन, नितान्त अपेक्षित है।
प्रस्थान-भारतीयदर्शन के परम्परागत प्रस्थानों का निरूपण भी आस्तिक प्रस्थान तथा नास्तिक प्रस्थान के रूप किया गया है। जिसका एक संक्षेप किन्तु स्पष्ट वर्णन महिम्नस्तोत्र के "त्रयी सांख्ययोग" श्लोक की मधुसूदनसरस्वती की व्याख्या में उपलब्ध है। नास्तिक प्रस्थानों का नाम यहाँ निर्देश करने के बाद मधुसूदन सरस्वती कहते हैं कि इन नास्तिक प्रस्थानों का समावेश ऋजु कुटिल नाना पथों में इसलिए नहीं किया गया है क्योंकि वेद वाक्य होने से ये साक्षात् या परम्परया पुरुषार्थ के उपयोगी नहीं है। इस प्रकार अन्यत्र भी दर्शन का वर्णन समिति रूप में ही हुआ है।
परिसंवाद-३
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