Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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संस्कृति-दर्शन-सम्भावनायें और स्वरूप
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के लिए आत्म-बलिदान तक कर देने की जो शिक्षा दी थी, आज उसका कोई नामलेवा तक नहीं है। सामान्य लोगों की तो बात ही क्या बड़ा से बड़ा शक्ति सम्पन्न व्यक्ति भी इतना अधिक अवसरवादी, लोभी और स्वार्थपरायण हो गया है कि वह अपनी राजनैतिक और सामाजिक हानि के भय से सत्य कहना तो दूर असत्य का ही सत्य के रूप में ढिंढोरा पीटता है। आत्मिक और नैतिक शक्ति के इस भयानक ह्रास का परिणाम यह होगा कि हम न तो अपने सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रख सकेंगे और न पश्चिमी देशों की बुद्धिवादी नैतिकता को ही अपना पायेंगे। अतः भारतीय परिप्रेक्ष्य में एक ऐसे नवीन दर्शन की आवश्यकता है जो संस्कृति का दर्शन हो, किन्तु संस्कृति का शास्त्र न बने, बल्कि संस्कृति-पुरुषों का निर्माण करे यह दर्शन वस्तुतः जीवन-दर्शन होगा, वाक्-विलास नही। यह प्रायोगिक और व्यावहारिक सत्यान्वेषण की उपलब्धियों को मानव हित में नियोजित करेगा। वह विद्वानों और पण्डितों का नहीं, सिद्ध संतों, द्रष्टा कवियों और कलाकारों तथा प्रातिभ शक्ति से युक्त सामान्य व्यक्यिों का दर्शन होगा। इस दर्शन का अध्यापन विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में हो या न हो; किन्तु परिवारों सामाजिक संगठनों और विद्वद् गोष्ठियों में इस दर्शन के सिद्धान्तों और उद्देश्यों को पहुंचाना आवश्यक होगा, ताकि निरन्तर प्रयास द्वारा समाज को मानसिक धारा को नयी दिशा में मोड़ा जा सके।
परिसंवाद-३
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