Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय परम्परा के अनुशीलन से नया दर्शन संभव
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वर्गीकरण -- भारतीय दर्शन के वर्गीकरण के सम्बन्ध में परम्परागत दृष्टिसे दर्शन दो भेद हैं आस्तिक और नास्तिक । नास्तिक वे हैं जो श्रुति के प्रामाण्य का विरोध करते हैं तथा तर्क एवं प्रत्यक्ष की प्रामाणिकता स्वीकार करते हैं । इनमें श्रुति के प्रति लेश मात्र की श्रद्धा नहीं देखी जाती ।
नास्तिक दो प्रकार के हैं । आध्याक्षिक ( प्रत्यक्ष प्रमाणवादी ) तथा तार्किक । चार्वाक प्रथम प्रकार का नास्तिक है । तार्किक नास्तिक के दो भेद है क्षणिकवाद और स्याद्वाद । इनमें क्षणिकवादी बौद्ध हैं और स्याद्वादी जैन । आस्तिक भी दो प्रकार के हैं ( १ ) सगुण आत्मवादी ( २ ) निर्गुण आत्मवादी |
( १ ) सगुण आत्मवादी भी दो प्रकार के हैं - (क) तार्किक, (ख) श्रोत । तार्किक भी दो प्रकार के हैं- (१) प्रच्छन्न तार्किक, (२) स्पष्ट तार्किक ।
१- प्रच्छन्न तार्किक भी दो प्रकार के है- (१) प्रच्छन्नद्वैत (२) स्पष्टद्वैत, रामानुज दर्शन प्रच्छन्न द्वैत है तो माध्वदर्शन स्पष्ट द्व ेत ।
२-- स्पष्टतार्किक भी दो प्रकार के हैं--भोग साधन - अदृष्टवादी तथा उत्पत्ति साधन - अदृष्टवादी । भोगसाधन अदृष्टवादी भी दो प्रकार के हैं-- विदेह मुक्तिवादी तथा जीवनमुक्तिवादी । विदेहमुक्तिवादी भी दो प्रकार के हैं -- आत्मभेदवादी तथा आत्मैक्यवादी । आत्मभेदवादी के दो भेद हैं - कर्म-अनपेक्ष- ईश्वरवादी, कर्मसापेक्ष ईश्वरवादी । कर्मअनपेक्ष ईश्वरवादी ( नकुलीश पाशुपत ) कर्मसापेक्ष ईश्वरवादी ( शैव ) आत्मैक्यवादी प्रत्यभिज्ञादर्शन वाले हैं । उत्पत्तिसाधन अदृष्टवादी भी दो प्रकार के हैं शब्द को प्रमाणान्तर अनङ्गीकार करने वाले तथा शब्द को प्रमाणान्तर अङ्गीकार करने वाले । इनमें प्रथम में वैशेषिक तथा दूसरे में नैयायिकों को रखा गया है । श्रौतदार्शनिक भी दो प्रकार के है वाक्यार्थभेदी तथा पदार्थभेदी । मीमांसा प्रथम भेद का प्रतिनिधि है, वैयाकरण दूसरे का । निर्गुण आत्मवादी भी दो प्रकार के हैं तार्किक तथा श्रौत । इनमें तार्किक भी दो प्रकार के हैं अनीश्वरवादी तथा ईश्वरवादी । इनमें सांख्य को प्रथम वर्ग में और योग को दूसरे वर्ग में रखा गया है । तथा श्रोत (निर्गुण आत्मवादी ) शांकरवेदान्त को माना गया है । २
१. श्रुतिप्रामाण्य/वरोधिनस्तार्किक विशेषाः नास्तिका एतेषां च लेशतोऽपि न श्रुतौ श्रद्धा संदृश्यते । उपोद्घात सर्वदर्शनसंग्रह पृ० ७९
२. उपोद्यात पृ० ११८ ( सर्वदर्शनसंग्रह )
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परिसंवाद - ३
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