Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
भारतीय दर्शनों में अपवादस्वरूप एक चार्वाक दर्शन ही ऐसा दर्शन है जो मोक्ष को जीवन का अन्तिम लक्ष्य नहीं मानता। अन्य सभी दर्शन भिन्न-भिन्न अर्थों में मोक्ष को स्वीकार करते हैं । वेदान्त और जैनादि दर्शनों के अनुसार मोक्ष से जीवन के दुःखों का मात्र शमन ही नहीं, अपितु परमानन्द की उपलब्धि भी होती है। अतः यह स्पष्ट है कि भारतीय दर्शन का कार्य निःश्रेयस् फल की प्राप्ति कराना है।
अब यहाँ प्रश्न है कि क्या भारतीयदर्शन का आस्तिक-नास्तिक रूप में विभाजन प्राचीन चिन्तन धाराओं की दृष्टि से उचित है। यह पहले भी लिखा जा चुका है कि किसी भी समस्या के समाधान से पूर्व उस समस्या को ठीक से समझा जाय, साथ ही इस बात का विशेष ध्यान रखा जाय कि समस्या का समाधान किसी पूर्वाग्रह या पारम्परिक और धार्मिक मान्यताओं से प्रभावित न हो। ईशा पूर्व के पातञ्जलि के अनुसार आस्तिक का अर्थ है 'अस्ति' को मानने वाला और नास्तिक का अर्थ है वह जो 'नास्ति' को माने। यह माना जाता है कि आस्तिक वह है जो परलोक को मानता है। और 'नास्तिक' वह है जो परलोक में विश्वास नहीं करता। किन्तु इन शब्दों के साथ बाद में नये अर्थ जुड़े। वेदों की सत्ता स्वीकार करने वाली प्रणालियाँ आस्तिक ,कही जाने लगी, और वेदों की सत्ता न स्वीकार करने वाली प्रणालियों को नास्तिक कहा जाने लगा। इस नये वर्गीकरण के अनुसार सांख्य, न्याय-वैशेषिक, योग, वेदान्त
और मीमांसा को आस्तिक वर्ग में रखा गया। वहीं लोकायत माध्यमिक, सौत्रान्तिक, वैभाषिक और जैन को नास्तिक वर्ग में रखा गया।
एक अत्यन्त प्रख्यात अवधारणा कि नास्तिकवाद अनीश्वरवाद है, गलत प्रमाणित किया जाता है। यदि भारतीय दर्शन का आस्तिक-नास्तिक विभाजन ईश्वरवाद के आधार पर किया गया होता तो सांख्य, वैशेषिक और मीमांसा को भी अनीश्वरवादी होने के कारण नास्तिक दर्शनों की श्रेणी में गिना जाता। सांख्य, वैशेषिक और मीमांसा इस जगत के उद्भव का मूलतत्त्व ब्रह्म अथवा परम चेतना के आदर्शवादी सिद्धान्त को नहीं, अपितु कोई न कोई भौतिकवादी सिद्धान्त ही मानते हैं।
___ भारतीय दर्शनों के वर्गीकरण के अनेक प्रयत्न हुए हैं। कुछ तो रूढ़िवादी और धर्म विरोधी प्रणालियों के रूप में विभाजन करते हैं। सांख्य-योग, न्याय-वेशेषिक, वेदान्त और मीमांसा को रूढ़िवादी प्रणाली तथा लोकायत, बौद्धदर्शन और जैनदर्शन को विधर्मी प्रणाली का मानते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि स्वयं अपने आपको
१. नास्तिको वेदनिन्दकः ।
परिसंवाद-३
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