Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
प्रो० राजाराम शास्त्री ने कहा- दर्शन के दोनों प्रकार के वर्गीकरण बन सकते हैं, साम्प्रदायिक तथा विषयगत । पर यदि सम्प्रदायगत विषय वस्तु को निकाल कर अन्य के साथ जोड़ दिया जाय तथा उसको अध्ययनाध्यापन का विषय वस्तु बनाया जाय तो उससे समग्रता की जगह पर एकरूपता आयेगी । जैसे आरम्भवाद के वाद पfणामवाद और पुनः विवर्तवाद विकास के क्रम में दिखाई देता है । पर आज विज्ञान ने सिद्ध कर दिया है कि वह आरम्भवादी है । इसलिए विकास क्रम का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि पूर्व का दार्शनिक संप्रत्यय अब विकास क्रम में अर्थहीन हो गया है । प्रत्युत दार्शनिक चिन्तन देश काल में परिच्छिन्न नहीं होता है । हर विकास क्रम को जानने के लिए इतिहास क्रम को रखा जा सकता है ।
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साम्प्रदायिक ढंग से अध्ययन करने पर खण्डन मंडन के क्रम में अन्दरूनी विकास का बोध होता है । सम्प्रदायगत विकास क्रम के साथ अध्ययन करने पर स्वतः विकास का बोध हो जायेगा । न्यायों का अध्ययन अनुसंधान करने वाले करेंगे । पर इसके लिए अलग विभाजन करके उनका एक वर्गीकरण करना उचित नहीं है ।
श्रीसुधाकर दीक्षित ने कहा- वर्गीकरण विषय के ज्ञानवृद्धि में सहायक होता है | अतः भारतीय दर्शन अनादि काल से वर्गीकृत है । पर यदि एक नया वर्गीकरण करना हो तो प्रमाणों के आधार पर एक वर्गीकरण किया जा सकता है । वास्तव में दर्शनों का कोई ऐतिहासिक क्रम सम्भव नही है । क्योंकि ये अनादिकाल से वेदों से ही उद्धृत हैं । अतः ऐतिहासिक क्रम से इनका वर्गीकरण सम्भव नहीं है । विद्वानों की सामान्यतया राय थी कि यदि वर्गीकरण आवश्यक ही हो तो उसके लिए वर्कशाप का स्वरूप देकर आयोजन होना चाहिए, सामान्य गोष्ठी में इस बात को स्पष्ट नहीं किया जा सकता है ।
अन्तिम प्रश्न को प्रस्तुत करते हुए प्रो० उपाध्याय ने कहा- जीवन की वर्तमान समस्याओं के समाधान में दर्शन का चिन्तन होना चाहिए । समता एक मूल्य है । यह मूल्य राजनीति, अर्थनीति तथा नैतिक दृष्टि से भिन्न-भिन्न प्रकार का है । दर्शन की पुरानी दृष्टि को क्या नये मूल्यों के अनुसंधान तथा विश्लेषण में नहीं लगाना चाहिए? हमारे दर्शन प्राचीन हैं तथा समस्यायें नवीन हैं तो क्या इनका सम्बन्ध पुराने विचारों को नए सन्दर्भ में रख कर नहीं किया जा सकता ?
प्रो० राजाराम शास्त्री ने कहा—जैसी चुनौती विद्यार्थी को मिलती है पाठ्यक्रम में उसको ध्यान में रख कर विचार किया जाना चाहिए। पर समाज की समस्या या अर्थ की समस्या की चुनौती को दर्शन में कैसे रखा जा सकता है ? प्रत्येक शास्त्र
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रिसंवाद - २
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