Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन की परमरा में नवीन सम्भावनाएं (१) दर्शन शब्द से क्या अभिप्राय है ?
(२) क्या भारतीय एवं पाश्चात्यदर्शन के दर्शनप्रत्यय से सम्बन्धित विचार एक सा है या भिन्न-भिन्न ?
(३) दर्शन का उद्देश्य और सत्य प्राप्ति से क्या सम्बन्ध है ? सत्य क्या है ? विचार या विचार से भिन्न ।
(४) भारतीय दर्शनों का उद्देश्य क्या अज्ञान को दूर करना मात्र है?
(५) दर्शन की उपयोगिता क्या है ? क्या उपयोगिता के आधार पर दर्शन का विवेचन होना चाहिए।
(६) मानवकल्याण का दर्शन से क्या सम्बन्ध है ? (७) क्या संतों का अनुभव दर्शन की कोटि में आता है ? (८) क्या दर्शनों के विकास के लिए धर्मनिरपेक्षता आवश्यक है ? (९) नये चिंतन के लिए क्या वादनिरपेक्ष होना आवश्यक है ?
(१०) मानव का सर्वोत्कृष्ट महत्त्व स्थापित करना क्या दर्शन का एक उद्देश्य है ?
. (११) दार्शनिक चिन्तन ने क्या वास्तविक समस्याओं को उलझा .. रखा है?
(१२) भारतीय दर्शनशास्त्र अनुभव जगत् को महत्त्व देता है या अनुभवातीत को?
(१३) निःश्रेयस इहलौकिक है या रहस्यात्मक है। (१४) क्या भारतीय धर्मों एवं नीति का भारतीय दर्शनो से सम्बन्ध है ?
(१५) दर्शन का क्षेत्र क्या है ? और वह किन-किन विषयों पर विशेष रूप से ध्यान देता है।
... (१६) 'पाश्चात्यदार्शनिक बाह्य एवं समाज की ओर अधिक उन्मुख है तो भारतीयदार्शनिक अन्तः तथा व्यक्ति की ओर' इस कथन में यथार्थता कहाँ तक है?
(१७) क्या जगत् को मिथ्या न मानकर भी श्रेष्ठ भारतीयदर्शन नहीं बन सकता?
(१८) विकासवाद भारतीय दर्शनों के अनुकूल क्यों नहीं है ?
(१९) क्या दर्शन मूल्य मीमांसा (पुरुषार्थ ) है ? धार्मिक मूल्य एवं दार्शनिक मूल्यों में क्या अन्तर है ?
(२०) दर्शन के अध्ययन की कौन-कौन सी प्रक्रियायें हैं तथा उनमें कौन-सी श्रेष्ठ हैं ?
... परिसंवाद-३
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