Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भवनाएं
(क) सन्तदर्शन--जिसमें सिद्ध, नाथ था, अन्य सन्त लोगों के विचारों का संग्रह हो।
(ख) नव्यभारतीय दर्शन-जिसमें श्री तिलक, श्री अरविन्द, श्री जे. कृष्णमूर्ति, श्री एम. एन. राय, श्री आर. जी. रानाडे, श्री इकबाल तथा श्री के. सी. भट्टाचार्य ।
(ग) व्यावहारिक दर्शन-जिसमें शिक्षादर्शन, समाजदर्शन, राजनीतिदर्शन, आचारदर्शन आदि का सन्निवेश हो और इस सन्दर्भ में भारतीय परम्परागत चिन्तन भी निकले।
उपर्युक्त विवरण सभी माननीय विद्वानों को इस सन्दर्भ में भेजे जा रहे हैं कि आप वर्तमान जीवन की समस्याओं का आकलन कर एक नवीन दर्शन की सम्भावना पर अपना विचार प्रस्तुत करें। विचारों को एक जगह संकलित करते वक्त लगा कि परम्परावादी विद्वान् नये दर्शन के पक्ष में नहीं हैं तथा नये अध्ययनशील दार्शनिक नये दर्शन की सम्भावना पर पूर्णरूप से सहमत हैं। संस्कृत-विश्वविद्यालय परम्परावाद का पोषक है फलतः वह भी नये विचारों के सन्दर्भ में कम ही उत्साह दिखा पाता है। पर आज जिस प्रकार हम मानवीय समस्याओं से घिरे हुए हैं उस पर विचार न करना अपना आत्मघाती स्वरूप प्रस्तुत करना है। परम्परावाद के कुछ मूल्य समाज में जन्मतः प्राप्त हैं उन मूल्यों का सुधार यदि हम अपने धार्मिक, दार्शनिक एवं नीति ग्रन्थों के सन्दर्भ से प्रस्तुत करें तो वह अधिक ग्राह्य होगा। हमारा समाज से कटाव हमारे भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। इसी सन्दर्भ में तुलनात्मकदर्शनविभाग द्वारा नये समायोजन का यह कार्य सम्पन्न किया गया है। परम्परावादी विद्वानों को इसमें आगे आकर भाग लेना चाहिए तथा जहाँ तक शास्त्रीय दृष्टि बन सके, सहयोग देकर समाज को परिष्कृत करना चाहिए। इन दृष्टियों से नवीन एवं प्राचीन परम्परावादी विद्वानों के सहयोग से नये विचार दर्शन की स्थापना में सहयोग मिलेगा।
परिसंवाद-३
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