Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 261
________________ २३६ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं के जीवन को तोड़ मरोड़ कर बराबर कर दिया जाय। समाज वास्तव में समष्टि रूप है जिसमें व्यक्तियों का समुदाय रहता है। समुदाय का व्यष्ट्यात्मक व्यक्ति जब अच्छा होगा तो समाज भी भला बनेगा। यदि व्यक्ति बुरा हुआ तो समाज भी बुरा बनेगा। इसीलिए शास्त्रों में व्यष्टि के साथ समष्टि की बात कही गयी है और व्यष्टयात्मक समष्टिवाद तभी सम्भव है जब व्यक्ति में वर्तमान अहंता, स्त्री, परिवार, गाँव, जनपद, प्रान्त, देश, संसार में विकसमान होता हुआ समस्त चराचर जगत में व्याप्त हो जाय, यह सम्भव है। किन्तु यह तभी सम्भव होगा जब हम अपना ममत्व, स्त्री परिवार, गाँव आदि में उसी प्रकार बढ़ायें जिस प्रकार अपने शरीर में अपना ममत्व है इस ममत्व का भी प्रमापक होगा, मानसिक वेदना। जैसे अपने शरीर के कष्टों का अपनयन मनुष्य अपनी शारीरिक ममता के वश करता है वैसे ही घर पारिवारिकों के कष्टों का भी करें। इसी प्रकार यह दायरा बढ़ाते हुए सम्पूर्ण मानवजाति तक ले जाया जाय । मानव जाति ही क्या समग्र प्राणिजगत् में भी यह भावना ले जायी जा सकती है। तभी तो शिवि ने बाज से जीव की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया। क्या ये निदर्शन नहीं बतलाते कि हम कितने उदारवृत्त वाले हैं। जब उनसे पूछा गया कि जैसे राष्ट्रनामक संस्था में मनुष्य संप्रदायों का हो कर अपने राष्ट्र के सम्मान, अभ्युदय एवं विकास के लिए अपनी संकीर्णताओं का त्याग कर प्रयत्नशील रहता है तथा उसमें छोटी-छोटी परिधियां नहीं आती हैं, उसी प्रकार भारतीय चिन्तनधारा का कोई नया स्वरूप नहीं खड़ा किया जा सकता जिसमें यह छुद्र प्रवृति न जग सके। उन्होंने कहा इसके लिए भी नये दर्शन की जरूरत नहीं है। क्यों न अपने हिन्दूदर्शन में वर्तमान उदार विचारों का प्रसार किया जाय तथा भागवत के ३० मानवीय धर्म प्रवृत्तियों का सबको पाठ पढ़ाया जाय, ताकि वे इस मानवीय धर्म को समझ सकें और इस प्रकार सबका साथ-साथ कल्याण हो सके। उन्होंने आगे कहा-आप लोग संकीर्णता की बात कहते हैं। लेकिन क्या यह आप नहीं जानते कि रावण ब्राह्मण था, फिर भी कोई अपने सजातीय ब्राह्मण का पक्ष क्यों नहीं लेता है तथा राम का ही भजन, मनन तथा स्मरण क्यों करता है। इसका एक मात्र कारण गुण है। वह गुण जो हमें अभिप्रेत है या हमारी संस्कृति को अभिप्रेत है । वह राम का गुण है, रावण का नहीं। हाँ मानवीय कमजोरियाँ भी हैं फिर भी उनका निराकरण युक्तिपूर्वक किया जा सकता है और वह युक्ति भी हमारे शास्त्रों में है। परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366