Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
प्रकार की विषमता को समर्थन दे या उसके प्रति मौन हो जाय। दर्शन के इस आत्मगत द्वन्द्व के आधार पर यह आशा करना कि वह धर्म और नीति का नियन्त्रण कर सकेगा, यह बहुत ही अधिक होगा। ये तार्किक कठिनाइयाँ अपने सुलझाव के लिये एक नये जीवन-दर्शन की अपेक्षा करती हैं, जो आध्यात्मिक मूल्यों को जीवन का मूल्य बनायें और उसकी चरितार्थता के आधार पर अपने को पुनः प्रतिष्ठित करें।
परिसंवाद-३
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