________________
२५०
भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
प्रकार की विषमता को समर्थन दे या उसके प्रति मौन हो जाय। दर्शन के इस आत्मगत द्वन्द्व के आधार पर यह आशा करना कि वह धर्म और नीति का नियन्त्रण कर सकेगा, यह बहुत ही अधिक होगा। ये तार्किक कठिनाइयाँ अपने सुलझाव के लिये एक नये जीवन-दर्शन की अपेक्षा करती हैं, जो आध्यात्मिक मूल्यों को जीवन का मूल्य बनायें और उसकी चरितार्थता के आधार पर अपने को पुनः प्रतिष्ठित करें।
परिसंवाद-३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org