Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय दर्शनों का नया वर्गीकरण परिचर्चा का संक्षिप्त विवरण
उन समस्याओं के समाधान के लिए दर्शन बनाते हैं । अतः दर्शन का मात्र काम है कि वह देखे कि जो दार्शनिक परिप्रेक्ष्य समस्याओं के समाधान के लिए रखा गया है। वह दर्शन की दृष्टि से उचित है या नहीं । जैसे द्वन्द्वात्मक भूतवाद का कैसे विकास होगा, इसको जानना अपनी परम्परा एवं दार्शनिकता के क्रम आवश्यक है ।
डा० सी० एन० मिश्र ( भागलपुर ) ने कहा - यद्यपि भारतीय दर्शन का चिन्तन मोक्ष या निर्वाण के लिए है । फिर भी नई समस्याओं के समाधान के लिए नये सिरे से विचार होना चाहिए । नयी पद्धति के दर्शन का अध्ययन करने पर समस्याओं के समाधान के उपाय मिल सकते हैं ।
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श्रीदातार शास्त्री ने कहा -- भारतीय शास्त्रकार जीवन की समस्याओं पर विचार करते हैं । न्याय पढ़ने का यह अर्थ नहीं है कि वह लोक व्यवहार से अनभिज्ञ रहे । नीति से च्युत होने पर जीवन अंधकारमय लगता है । पर जगत् की उपकार बुद्धि का विकास होने पर समस्याओं का समाधान भारतीय चिन्तन की दिशा से भी हो सकता है ।
पं० सुधाकर दीक्षित ने कहा -- भारतीय दर्शन जीवन की समस्याओं से अछूते नहीं हैं । गौतम ने प्रत्यक्ष के विवेचन के साथ प्रवृत्ति एवं दोष का भी विवेचन किया है । इन्हें आज के सन्दर्भों में न सोचने से समस्याओं का निदान अपने दर्शनों में नहीं दीख रहा है । पर इस तरह का चिन्तन यदि प्रारम्भ किया जाय तो सबका समाधान भारतीय दर्शनों के माध्यम से किया जा सकता है। वैशेषिकदर्शन में भी साङ्गोपांग रूप में वह आचार शास्त्र विवेचित है जो सामाजिक दर्शन का प्रशस्त आधार बन सकता हैं ।
to रामशंकर मिश्र (का० हि० वि० वि० ) ने कहा -- भारतीय दर्शनों में आधुनिक जीवन से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान का तत्त्व तो मिल सकता है, पर भारतीय दार्शनिकों ने अपने शास्त्रों में जीवन सम्बन्धी बातों पर कम ध्यान दिया है | यहाँ प्लेटो, अरस्तु के समान दर्शन के साथ सामाजिक समस्याओं या जीवन की समस्याओं के समाधान के लिए दार्शनिक चिन्तन नही उपलब्ध है । हमारे यहां केवल तत्त्वप्रमाण आदि मीमांसायें ही उपलब्ध हैं सामाजिक दर्शन नहीं । इसलिए आज के दर्शन को इन सामाजिक समस्याओं का भी दर्शन प्रस्तुत करना ही चाहिए ।
अन्त में प्रो० उपाध्याय ने कहा- परिचर्चा के बाद संक्षिप्त में चर्चित बातों का रखा जाना तथा उस पर निद्वानों की राय जानना आवश्यक होता है । पर इतने
परिसंवाद - ३
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