Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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'भारतीयदर्शनों का नया वर्गीकरण' परिचर्चा का संक्षिप्त विवरण
दिनांक २५-४-८१ को "भारतीय दर्शनों का वर्गीकरण" विषय पर सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के मुख्यभवन के व्याख्यान कक्ष में द्विदिवसीय परिचर्चा डा० देवस्वरूप मिश्र के स्वागत भाषण के अनन्तर प्रारम्भ हुई । सर्वप्रथम संगोष्ठी के संयोजक श्रीराधेश्यामधरद्विवेदी ने गोष्ठी से सम्बन्धित प्रश्नावली को विद्वानों के समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत किया । तदनन्तर विश्वविद्यालय के कुलपति डा० गौरीनाथ शास्त्री
अपने संक्षिप्त उद्घाटन भाषण में इन प्रश्नावलियों का महत्त्व स्वीकार करते हुए कहा कि सभी दर्शनों के प्रवक्ता ऋषि थे । ऋषि सत्य द्रष्टा होते हैं और सत्य एक ही होता है । ऐसी स्थिति में यह भी विचारणीय है कि ऋषियों से सम्बन्धित इन दर्शनों में मतभेद कैसे होता है । और जैसे आस्तिक दर्शनों के तत्त्वद्रष्टा ऋषि गण थे वैसे नास्तिक दर्शन के तत्त्व द्रष्टा बुद्ध को भी ज्ञान का प्रकाश हुआ था । ऐसी स्थिति में दर्शनों का आस्तिक नास्तिक भेद करने का औचित्य क्या है ?
विषयोपस्थान में धर्मो के बीच से भारतीय दर्शनों का कैसे उद्भव हुआ और किस प्रकार प्रारंभ से अन्त तक भारतीय दर्शन विभिन्न धार्मिक धाराओं से प्रभावित रहा है इसे बताते हुए प्रो. जगन्नाथ उपाध्याय ने कहा कि - वर्तमान परिस्थिति में धर्म एवं सम्प्रदायों से निरपेक्ष होकर दार्शनिक चिन्तन करना आवश्यक हो गया है । इसके लिए उन्होंने प्रस्तावित किया कि दर्शनों का विषयानुरोधी नया वर्गीकरण किया जाना चाहिए। अबतक शास्त्रों की मान्यताओं को विश्वसनीय बनाने में बुद्धि एवं तर्क का प्रयोग किया गया, अब स्वयं निरपेक्ष बुद्धि को ही अधिकाधिक स्पष्ट एवं विश्वसनीय बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए उन्होंने यह भी कहा कि प्राचीन काल में ज्ञान के स्रोत अल्पतम थे । अब भौतिक विज्ञान कुछ ऐसे तथ्यों को प्रगट करता जा रहा है जिनसे विश्व का दार्शनिक चिन्तन एक नया मोड़ ले रहा है । हमें भी अपने ज्ञान की वृद्धि में यथा सम्भव उनकी उपलब्धियों की सहायता लेनी चाहिए । अन्त में उन्होंने कहा कि दर्शनों के नये वर्गीकरण और उसमें नये तत्त्व
परिसंवाद - ३
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