Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय दर्शनों के वर्गीकरण पर एक विचार
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बौद्ध धर्म और जैन धर्म रूढ़िवादी मानते थे, वहीं वेदान्त को वे दर्शन की विधर्मी प्रणाली मानते थे। इस प्रकार मनचाही अनेक प्रणालियों में भारतीय दर्शनों का विभाजन हो जायेगा । जैसा कि "भारतीय दर्शनों के वर्गीकरण से सम्बन्धित कुछ विचारणीय प्रश्न" में भी एक नई प्रणाली दर्शायी गयी है।
अतः अगर भारतीय दर्शन का भौतिकवादी और आध्यात्मवादी या अभौतिकवादी प्रणालियों के रूप में विभाजन किया जाय तो यह अत्यन्त यथार्थ और निष्पक्ष सा प्रतीत होता है।
अध्यात्मवाद के खेमे में वे दार्शनिक आते हैं जो आत्मा को प्राथमिकता देते हुए किसी न किसी रूप में इस जगत को ब्रह्म का कौशल मानते हैं। दूसरी ओर भौतिकवादी दार्शनिक वे हैं जो आत्मा के अलावा प्रकृति की प्राथमिकता की उपस्थापना करते हैं।
भारतीय समाज ने न केवल आध्यात्मिक या आदर्शवादी विचारों को ही अपितु भौतिकवादी विचारों को भी जन्म दिया। वैसे तो देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय ने अपनी पुस्तक लोकायत में आध्यात्मिक विचारों के उदय के सन्दर्भ में लिखा है किआदर्शवाद. आदिम आद्य-भौतिकवाद के, जो आदिमवर्ग पूर्वसमाज की चेतना का द्योतक था, ध्वंसावशेषों पर हुआ । इनके अनुसार न केवल लोकायत, अपितु सांख्य और योग, और यहाँ तक कि मध्ययुगीन तन्त्रवाद, कबीलों के रूप में रहने वाले लोगों के आदिमकालीन प्रजनन-सम्बन्धी जादू से उत्पन्न हुए थे, जिसे सुव्यवस्थित भाषा में आहा भौतिकवाद कहते हैं । आद्य-भौतिकवाद में प्रकृति की धरती माता की उत्पादकता को मानव प्रजनन की प्रक्रिया का अनुकरण करके बढ़ाया अथवा आकर्षित किया जा सकता है और इसी प्रकार मानव उर्वरता प्राकृतिक उर्वरता से सम्बद्ध है,' पर आधारित है। इनके ही अनुसार वैदिक विश्व दृष्टिकोण एक प्रकार से आद्य भौतिकवाद की धरती का उपज था, क्योंकि वह कर्मकाण्डों से जुड़ा हुआ था।
१. के. दामोदरन् भारतीय चिन्तन परम्परा पृ० ८८ २. देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय लोकायत पृ० २३ देखिए, भारतीय चिन्तन परम्परा पृ० ८६ ३. देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय लोकायत पृ० २०, ६३, , ४. के. दामोदरन भारतीय चिन्तन परम्परा पृ० १८
परिसंवाद-३
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