Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय दर्शनों का नया वर्गीकरण परिचर्चा का संक्षिप्त विवरण
विचारों को भारतीय कहा जाता है तो आत्मवाद को भी भारतीय दर्शन का लक्ष्य क्यों न माना जाय ।
इसके उत्तर में प्रो. राजाराम शास्त्री ने स्वीकार किया कि आत्मप्रत्यय एवं अनात्मप्रत्यय दोनों ही वैदिक संप्रत्यय हैं । संप्रत्यय मानकर कहा जा सकता है ?
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डा० गोकुलचन्द जैन ने इस विषय पर अपना मत प्रकट करते हुए कहा कि दर्शनों के साथ भारतीय विशेषण देना उचित नहीं है । क्योंकि जिन विषयों पर भारतीय दार्शनिकों ने विचार व्यक्त किया है। उस पर पाश्चात्य विचारकों ने भी विचार किया है । इस प्रकार कोई व्याप्ति नहीं है । जिसके आधार पर भारतीय विशेषण को उपयुक्त माना जाय ।
डा० रेवतीरमण पाण्डेय ने पाश्चात्य दर्शन से भारतीय दर्शन की भिन्नता बतलाते हुए कहा कि भारतीयदर्शन अध्यात्मवादी है। जबकि पाश्चात्य दर्शन भौतिकविज्ञानवादी है । भारतीय दर्शन धर्मपरक है जब कि पाश्चात्य दर्शन काम और अर्थपरक | उन्होंने सर्वदर्शनसंग्रह, सर्वदर्शनसमुच्चय तथा डा० राधाकृष्णन
भारतीय दर्शन में जिन विषयों का समावेश किया गया है उन विषयों की तालिका प्रस्तुत करते हुए कहा कि इतने विशाल वाङ्गमय को आत्मसात करने वाला भारतीय दर्शन है ।
श्री नरेन्द्रनाथ पाण्डेय (सं० सं० वि० वि० ) ने कहा कि सभी भारतीय दार्शनिकों की सामान्य प्रवृत्ति दुःखनिवृत्ति एवं सुखप्राप्ति रही है । चार्वाक और सभी मोक्षवादी दर्शन सुख के लिए दुःख को ही लक्ष्य मानते हैं । इसलिए यही लक्षण भारतीय का नियामक है ।
दिनांक २६-४-८१ को प्रो० राजाराम शास्त्री की अध्यक्षता में सर्वप्रथम तुलनात्मक दर्शन के शोधछात्र श्रीरामविहारी द्विवेदी ने अपना निबन्ध पढ़ा | तदनन्तर गतदिन की परिचर्चा का सारांश प्रस्तुत किया परिसंवाद गोष्ठी के संयोजक श्री राधेश्यामधर द्विवेदी ने ।
विषय की उपस्थापना करते हुए प्रो० जगन्नाथ उपाध्याय ने कहा - सर्वप्रथम धर्म का दर्शन से क्या सम्बन्ध है ? तथा दर्शन के प्रामाण्य के लिए शास्त्रों का क्या
परिसंवाद - ३
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