Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय दर्शनों की दृष्टि से गांधी-विचारों का विवेचन दो प्रकार का बताती है एवं इन दो प्रकारों में भेद देखती है। ऐसी मिथ्या धारणा प्रायः आचार्य शंकर पर थोपी जाती है । आचार्य शंकर के अनुसार निर्गुण एवं सगुण ब्रह्म के दो प्रकार नहीं हैं एक ही परम सत् के दो रूप हैं। अतः यह प्रश्न उठाना अधिक सुसंगत होगा कि गांधी निर्गुण प्रधान हैं अथवा सगुण प्रधान हैं ? इस प्रश्न पर विचार करने के पहले हम देखना चाहेंगे कि गांधी का ईश्वर को सत्य कहने का क्या आशय है ? गांधी ने ईश्वर को सत्य की संज्ञा दी है। मैं ईश्वर की सत्य के रूप में उपासना करता हूँ। मैं अपने एक रूप अनुभव से विश्वस्त हूँ कि सत्य के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं है।'गोधी के अनुसार सत्य एवं ईश्वर पर्याय हैं किन्तु जहाँ पहले गांधी 'ईश्वर सत्य है' कहा करते थे, इसे बदलकर 'सत्य ईश्वर है' उन्होंने यह रूप भी दिया। क्यों? 'ईश्वर सत्य है' में 'है' शब्द निस्सन्देह न तो 'बराबर अर्थ देता है और न सत्यपूर्ण का। सत्य' ईश्वर का मात्र विशेषण नहीं है, वह सत्य ही है। वह कुछ भी नहीं, यदि सत्य नहीं है। सत्य संस्कृत में 'सत्'-अस्ति' से निष्पन्न होता है। अतः हम जितना सत्यपूर्ण होंगे, उतना अधिक ईश्वर के निकट होंगे । हम उसी सीमा तक हैं जिस सीमा तक सत्यपूर्ण हैं । ३
इस प्रकार सत्य ईश्वर का मात्र विशेषण नहीं है, बल्कि उसका स्वरूप है। इस बात पर बल देने के लिए ही गान्धी ने सत्य को ईश्वर से पहले कर दिया। सत्य ईश्वर है। वे लिखते हैं 'यदि ईश्वर का पूर्ण वर्णन करना मानव वाणी के लिए सभ्भव है तो हम ईश्वर को सत्य कह सकते हैं किन्तु मैंने एक कदम आगे जा कर कहा-सत्य ईश्वर है। 'सत्य ईश्वर हैं' मुझे सर्वाधिक सन्तोषपूर्ण लगा।' यह टिप्पणी सुन्दर है, यदि सत्य ईश्वर है तो सत्यपरायण नास्तिक की नास्तिकता में भी देवत्व है। यहाँ गान्धी का विवेचन सर्वथा शास्त्रीय हो गया है। यह स्पष्ट अद्वैतवाद है किन्तु उनके अद्वैतवाद में सगुण पक्ष की प्रधानता है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में अपने को वैष्णव कहा है। वे ज्ञानी की अपेक्षा भक्त हैं। गान्धी बार-बार अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि ईश्वर करुणानिधान है भक्तवत्सल है. निर्बल का बल है, दीनबन्धु है।
१. गांधी : ऐन आटोवायोग्रैफी पृ. ७ २. वही, पृ. ६१५ ३. उद्धृत मार्डन इण्डियन थाट, पृ. १८० ४. वही, पृ. १८१ ५. वही
परिसंवाद-३
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