Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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'सत्य, अहिंसा और उनके प्रयोग' संगोष्ठी का संक्षिप्त विवरण
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अहिंसा को अपरिहार्य मानते हुए योगदर्शन के व्यक्तिगत अहिंसा की प्रतिष्ठा को गांधी जी ने सामाजिक प्रतिष्ठा दी। वह मानवीय समस्याओं के समाधान के लिए अहिंसा के शस्त्र को ढाल के रूप में अख्तियार करते हैं।
___ गांधी-दर्शन का एक तीसरा पहलू सर्वोदय की भावना का विकास करना है। इसमें वह जातिविहीन, वर्गहीन, आर्थिक विषमता रहित समाज के निर्माण की बात करते हैं। गांधीजी का यह सर्वोदय परम्परागत रूप में 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' के क्रम में अवश्य है पर इसकी व्यावहारिकता संदेह से रहित नहीं है।।
उनका साध्य-साधन का दार्शनिक मत भी आदर्श प्रतिमानों एवं प्रक्रियाओं के व्यावहारिक आयोजन के बिना अधूरे प्रतीत होते हैं।
हिन्दूविश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के रीडर डा. रेवतीरमण पाण्डेय ने गांधीजी के विचारों का विवेकन प्रस्तुत करते हुए कहा--गांधी ने जीवन के आन्तरिक मूल्यों का दैनन्दिन जीवन में कैसे प्रयोग हो ? इसकी व्याख्या की है। गांधीजी में उनके पूर्व के सभी अहिंसक अध्यात्मवादी सन्तों का समावेश है। वह अद्वैत स्थित के लिए आत्मशुद्धि पर बल देते हैं। गीता की स्थित प्रज्ञता को उन्होंने पूर्ण शुद्धता के रूप में लिया है। इस स्थिति तक पहुँचने के लिये एकादश आश्रम व्रतों को आवश्यक मानते हैं। गांधीजी ने आत्म शुद्धि के मार्ग से ईश्वरास्था में प्रवेश किया। जिसे वह 'सत्यस्य सत्यं' कहते हैं। उन्होंने ईश्वर सत्य है इसका प्रतिलोम करके सत्य ईश्वर है, यह स्वरूप प्रदान किया है। इस विवेचन में गांधीजी शास्त्रीयता का प्रतिभान कराते हैं पर वह ज्ञानी की अपेक्षा भक्त अधिक हैं। इसीलिए वह सर्वजन के कल्याण या सर्वोदय के लिए कर्म मार्ग में चल पड़ते हैं।
_ संस्कृत विश्वविद्यालय के शोध छात्र श्री सुभाषचन्द्र तिवारी ने कहागांधीजी के विचारों का आकलन दो मुख्य विन्दुओं से किया जाना चाहिए, वे हैं (१) गांधी के प्रयोग तथा (२) उन प्रयोगों का आधुनिक सन्दर्भ । गाँधीजी का सबसे बड़ा प्रयोग सत्य और अहिंसा का है उन्होंने इन व्यक्तिगत सिद्धान्तों को लोकसिद्धान्त का रूप दिया तथा लोक को इस पर चलने के लिए बाध्य किया । गांधीजी की बुनियादी शिक्षा भी एक नवीन प्रायोगिक शिक्षा थी। बुनियादी शिक्षा में प्रत्येक व्यक्ति की आत्मनिर्भता एवं स्वावलम्बन पर जोर था। स्वावलम्बन पर अधिक जोर देने के कारण हो वह चारित्रिक विकास पर बल देते थे और विना इसके स्वतन्त्रता का कोई मूल्य नहीं मानते थे। आज के सन्दर्भ में कोठारी आयोग
परिसंवाद-३
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