Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय दर्शनों का वर्गीकरण
१६९ अस्ति ब्रह्मेति चेद्वेद परोक्षज्ञानमेव तत् ।
अस्मि ब्रह्मेति चेद्वेद साक्षात्कारः स उच्यते ॥ इस भेद का अनुभव कुछ पाश्चात्य मनीषियों ने भी किया है। इसलिए वे भारतीय शब्द 'दर्शन' के लिए 'Philosophy' का नहीं अपितु Philousia का प्रयोग अधिक उपयुक्त समझते हैं।
Eastern wisdom, Dr. Haos ( The Destiny of the Mind, East and West ) maintains, is best described not as "Philosophy” which is concerned with the objects of Conciousness, and marked by Conceptual thinking, but as “Philousia-the love of reality or essence" (Hibbert ournal, Jan. 1957, p. 203)
भारतीय दर्शन की सबसे बड़ी से बड़ी विशेषता यह है कि यह जीवन की अनिवार्य समस्या के समाधान के लिए प्रवृत्त होता है किन्तु पाश्चात्यदर्शन की प्रवृत्ति वैसी नहीं देखी जाती है। यह पाश्रात्यों की दर्शनविषयक धारणा से ही सुस्पष्ट हो जाता है।
ग्रीक दार्शनिक प्लेटो के अनुसार दर्शन की उत्पत्ति आश्चर्य की वृत्ति में होती है। (Philosophy is the child of wonder.) यह सही है कि हम विश्व को कभीकभी आश्चर्य से देखते हैं ( आश्चर्यवत्पश्यतिकनिदेनम् ) परन्तु यह भी तो सम्भव है कि हम इस प्रकार का आश्चर्य न करें या केवल आश्चर्य तक ही अपने को सीमित रक्खें। सभी लोग आकाश में इतनी ताराओं को देखकर कभी-कभी आश्चर्य करते हैं। कुछ लोग उनके सम्बन्ध में थोड़ा-बहुत जानते भी हैं किन्तु बहुतेरे जो कुछ भी नहीं जानते हैं वे केवल क्षणिक आश्चर्य प्रकट कर रह जाते हैं। वह आश्चर्य करना उनके व्यावहारिक जीवन का स्पर्श नहीं करता है।
दकातें के अनुसार दर्शन की उत्पत्ति सन्देह की वृत्ति से होती है (Doubt originates Philosophy)। किन्तु क्या यह सम्भव नहीं है कि हम सन्देह न करें और हमारी जिज्ञासा वृत्ति (instinct of exploration). है जिसे कुछ पाश्चात्य दार्शनिक दर्शन का जनक मानते हैं, उसकी तुष्टि न होने पावे, और फिर भी हम सुख से जीवें ? न्यूटन के पहले किसी ने सेव के गिरने पर न तो सन्देह किया था और न उसके
परिसंवाद-३
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