Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय दर्शनों का वर्गीकरण
आचार्य पं० विश्वनाथशास्त्री दातार सर्व एव यजन्ति त्वां सर्वदेवमयेश्वरं ।
येऽप्यन्यदेवताभक्ता यद्यप्यन्यधियः प्रभो ॥ (१) प्रश्न-भारतीय दर्शन से क्या समझा जाय ?
उत्तर-भारतीय दर्शन की व्याख्या करने के पहले दर्शन की व्याख्या समझनी होगी। तभी दर्शनों की भारतीयता का चिंतन संगत होगा। मतिभावात्मक "मनोबृत्ति के निरूपण में कहा गया है-'नानाशास्त्रार्थ निष्पन्ना मतिः स्याच्छ तधारिणी' शिष्यों के हित में व्यावहारिक एवं पारमार्थिक जीवन को देखते हुए शास्त्रनिष्णात मति विद्यार्थी को पुरुषार्थसाधक मार्ग को प्रकाशन कराती है । उक्त प्रकाशन करना ही दर्शन है। उक्त प्रकाशन जिन शास्त्रों में निरूपित हैं वे भी लक्षणयादर्शन 'कहे जाते हैं। इस व्याख्या के अनुसार भारतीय मनीषियों ने न्याय, योग, वैशेषिक आदि के समान अन्यान्य शास्त्रों को दर्शन-संज्ञा से व्यवहत किया है यथा “दर्शनात्तस्य सुहदो विद्यानां पारदृश्वनः।"
दर्शन में भारतीयता
दर्शनों में जो प्रमेय निरूपित होते हैं। वे यदि प्रमाणों से पुष्ट हैं .तो. संवादी कहे जाते हैं। प्रमाणों के अन्तर्गत जिन प्रमाणों का उल्लेख शास्त्रों में प्राप्त होता है उनमें प्रत्यक्ष, अनुमान एवं शब्द-इन तीन प्रमाणों के बल को ही भारतीय मनीषियों ने प्रमेय के निरूपण में उपादेय माना है। इवंप्रथमतया सन्द (परोक्ष) को प्रमाण मानना भारतवासियों की भारतीयता है। मतिभावप्रकाशन में 'सहायसाधनादिपञ्चांगमन्त्रसंख्याफलप्रधानगुणभावस्वरूप' निर्वचन की पर्याप्ति में पूर्णता मानी गयी है। अतः दर्शनों के उपदेश अकाट्य एवं सिद्धान्त रूप हैं।
-परिसंसार-३
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