Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
प्रति जिज्ञासा से प्रेरित हो कर उस घटना की व्याख्या ही की थी। फिर भी बेचैन से जीते रहे ।
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ब्रेडले महोदय का कथन है कि मानव स्वभाव की एक रहस्यात्मक वृत्ति होती है जिसके शमन के लिए दर्शन की उत्पत्ति होती है । ( I have been obliged to speak of philosophy as a satisfaction of what may be called the mystical side of our nature a satisfaction which, by ecotion persons, cannot be as well procured otherwise ) परन्तु जिस रहस्यात्मक वृत्ति के सम्बन्ध में ब्रेडले कह रहे हैं वह स्वयं बहुतों के लिए एक रहस्य है । फिर उसका यदि शमन न भी हो तो साधारण मानवीय जीवन में कोई अन्तर नहीं आ सकता ।
पुनः स्वायंकरे महोदय का मत है कि दर्शन का जन्म जिज्ञासावृत्ति से नहीं अपितु सौन्दर्य वृत्ति से होता है- It is not the intellectual satisfaction but the aesthetic sense that originates Philosophy. इस मत के सम्बन्ध में यह तो कहा ही जा सकता हैं कि बहुतेरे मनुष्य ऐसे है जिनमें सौन्दर्यवृत्ति इतनी अस्पष्ट रहती है कि उसका भान तक नहीं होता है । दूसरी बात यह है कि सौन्दर्यवृत्ति के तोष के बिना भी तो मानवीय जीवन जिया जा सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि सौन्दर्यवृत्ति की तृप्ति हो अथवा नहीं, यह हमारे जीवन की अनिवार्य व क नहीं हो सकती है ।
और आज के अत्याधुनिक विश्लेषणवादी पाश्चात्यदार्शनिक तो स्वयं स्वीकारते हैं कि दर्शन का कार्यं भाषा विश्लेषण है, जीवन विश्लेषण नही ।
यहाँ पाश्चात्य दर्शन से कुछ दृष्टान्त इसलिए उद्धृत किए गये कि हम पाश्चात्यों के दर्शनविषयक दृष्टिकोण से अवगत हो जो जीवन के किसी पक्ष विशेष से सम्बद्ध हैं और मूलत: सैद्धान्तिक हैं। इसके विपरीत भारतीय दृष्टिकोण अपने उद्भव और लक्ष्य दोनों में यथार्थपरक है और इसलिए व्यावहारिक है । यह कौन नहीं स्वीकार करेगा कि जीवन के कार्य कलाप का एक मात्र लक्ष्य होता है दुःख का परिहार और सुख की प्राप्ति ।
परिसंवाद - ३
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दुःखं न मे स्यात्, सुखमेव मे स्यात् ।
इति
प्रवृत्तः
सततं हि लोकः ॥ ( बुद्धचरित )
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