Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं ४-कहा जाता है कि भारतीय दर्शनों का कार्य अपनी अपनी धार्मिक मान्यताओं एवं विश्वासों की पुष्टि करना है। इसलिए यहाँ के दर्शन एक प्रकार के धार्मिक चिन्तन ही हैं। इस धारा में न तो स्वतन्त्र दार्शनिक चिन्तन सम्भव है और न उनका विशुद्ध दार्शनिक दृष्टिकोण से वर्गीकरण किया जा सकता है। इस मत का कहाँ तक औचित्य है। क्या धर्मनिरपेक्ष दार्शनिक चिन्तन का कोई वर्ग बन सकता है?
५-भारतीय दर्शनों में प्रायः यह देखा जाता है कि अपने मत के पक्ष में आगमों की सहमति तथा विपक्ष के खण्डन में उसकी विमति के लिए आगम वचन उद्धृत किये जाते हैं। इसका एक अभिप्राय यह हो सकता है कि भारतीय दर्शनों का युक्तिवाद दुर्बल है। इस दुर्बलता को हटाने की दिशा में दार्शनिक चिन्तन की प्रक्रिया क्या हो ?
६-भारतीय दर्शन में देखा जाता है कि कोई नवीन दार्शनिक प्रस्थान खड़ा करने के लिए भी प्राचीन सूत्र या शास्त्रों की अपने अनुरूप नवीन व्याख्या की जाती है। इससे यह माना जाता है कि भारतीय दर्शनों में मौलिक चिन्तन अतिप्राचीनकाल में हुआ, बाद में उसकी धारा अवरुद्ध हो गयी। केवल पूर्व का या तो पिष्टपेषण किया गया या यत्किंचित् मूलाधारित नवीनता लायी गयी। कहा जाता है कि इस प्रकार दर्शन का नवीन चिन्तन सम्भव नहीं हुआ। इस स्थिति में भारतीय चिंतन की दिशा क्या हो ? ..
___७-देखा जाता कि संपूर्ण भारतीय दर्शन का प्रमुख प्रयोजन प्रायः निर्वाण का लाभ करना है इसी अर्थ में इसे आध्यात्मिक कहा जाता है। विदित है कि निर्वाण ऐहिक जीवन का आदर्श नहीं है, इस स्थिति में यह आक्षेप होता है कि सभी भारतीय दर्शन वर्तमान जीवन की समस्याओं से विमुख हैं। और समाज की दृष्टि से पलायनवादी हैं। यह आक्षेप जिस अंश तक संगत है उसके निराकरण के लिए क्या दर्शन को ऐहिक समस्याओं के समाधान के अभिमुख करना आवश्यक है। इस दृष्टि से भारतीय दर्शनों का क्या कोई वर्गीकरण किया जा सकता है।
८-यह कहाँ तक उचित होगा कि अब भारतीय दर्शनों का नया वर्गीकरण किया जाय । उदाहरण के रूप में क्या निम्नलिखित प्रकार के वर्गीकरण में किसी प्रकार की बाधा है ?
परिसंवाद-३
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