Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय दर्शनों के वर्गीकरण से सम्बन्धित
प्रश्नों के उत्तर
आचार्य पं० बदरीनाथ शुक्ल १-भारतीय दर्शन उन दर्शनों को समझा जाना चाहिए जिनका प्रादुर्भाव इदं प्रथमतया भारतीय मनीषीयों के मस्तिष्क से हुआ है। इस प्रकार भारतीय चिन्तकोपज्ञता ही दर्शन में भारतीयता है, वह भारतीय दर्शन की असाधारणता है।
भारतीय दर्शनों को उनके उद्देश्य की दृष्टि से यदि परिभाषित किया जाय तो उसके अनुसार निःश्रेयसफलकत्व ही भारतीय दर्शनों का लक्षण कहा जा सकता है। निःश्रेयस की परिभाषा भारत के तत्तद् दर्शनों के अनुसार कुछ विभिन्न रूप में हो सकती है। किन्तु निःश्रेयस को सभी भारतीय दर्शनों को उद्देश्य कहने में कोई बाधा नहीं है।
२--भारतीय दर्शनों का आस्तिक-नास्तिक रूप में विभाजन किस आधार पर है ? प्रस्तुत प्रश्न का उत्तर उस आधार के औचित्य पर निर्भर है। भारतीय दर्शन को मुख्य रूप से तीन आधारों पर आस्तिक-नास्तिक के रूप में निर्धारित किया जाता है।
(क) वेदाविरोधित्व और वेदविरोधित्व--जो दर्शन वेद के अविरुद्ध हैंउन्हें आस्तिक, और जो वेद के विरुद्ध हैं उन्हें नास्तिक कहा जाता है। यतः वेद एक चिर परीक्षित प्रामाणिक वाङ्मय है। इसका प्रतिपादन तर्कों की कसौटी पर खरा उतरता है अतः इसके आधार पर दर्शनों के विभाजन के औचित्य की एक सीमा मानी जाती है।
(ख) दूसरा आधार है आत्मा की ऐकान्तिक नित्यता और उसके अभाव का। जिन दर्शनों में आत्मा की एकान्त नित्यता मानी गयी, वे आस्तिक हैं । जो नहीं मानते, वे नास्तिक हैं। आत्मा की एकान्त नित्यता का अभ्युपगम मनुष्य को निर्भय
परिसंवाद-३
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