Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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'सत्य, अहिंसा और उनके प्रयोग' संगोष्ठी का संक्षिप्त विवरण
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के प्रदूषण से गंगा का पानी इतना प्रभावित हो गया है कि अब वह बात नहीं रह गयी। आज शहर को हवा भी प्रदूषित है फैक्टरियों के धुर्वे के कारण। गांधी को न समझने वाले औद्योगीकरण के हिमायती लोगों के द्वारा यह समस्या खड़ी की जाती है। क्योंकि कुटीर उद्योग का संरचात्मक कार्यक्रम उनको रास नही आता। वह कताई, खेती तथा स्वयं की सफाई से प्रदूषण नहीं रोकना चाहते । वह फैक्टरीनुमा विश्वविद्यालय की शिक्षा को बुनियादी तालीम के साथ जोड़ते थे, उनकी शिक्षा आदर्श के साथ व्यवहारपरक भी थी, अतएव वह कहते थे जिस शिक्षा से प्रीति, मुक्ति, अभिव्यक्ति का संचार नहीं होता, वह शिक्षा शिक्षा नहीं है। वह समाज सेवा, जन जन शिक्षण तथा स्वदेशीपन पर जोर देते थे ।
एक बात और कहंगा, अध्यात्म की। गांधी जी जब प्रतिरोध करते थे तो अहिंसा को अपने लक्ष्य का साधन मानते थे, वह व्यक्तिगत जीवन में इसका पालन करते थे और सामाजिक जीवन में उसकी परीक्षा। गांधी-अहिंसा को निष्क्रिय एवं सक्रिय रूप में देखा जाता है पर वह उसकी प्रतिष्ठा जीवन में करके उसको सामाजिक स्वरूप प्रदान करते थे, बार बार उसके परीक्षण के बाद वह अपने व्यक्ति गत अहिंसक साधन को शुद्ध कर पाते थे। यह परीक्षण हमारे प्राचीन संस्कृति के पुराने पवित्र नैतिक मूल्यों का था। इनका उन्होंने प्रयोग किया और वे प्रयोग सफल रहे। समाज का कोई व्यक्ति यह प्रयोग करके देख सकता है। इस सन्दर्भ में उसके जीवन में परिष्कार संभव होगा और वह अस्पृश्यता, संकीर्णता आदि से ऊपर उठेगा। वह हमारी परम्परा की आध्यात्मिकता को प्राप्त करेगा। जिसे गांधीजी ने प्राप्त किया था। इन कतिपय विचारों के साथ मैं इस परिचर्या गोष्ठी का उद्घाटन करता हूँ।
प्रो० राजाराम शास्त्री भू०पू० कुलपति, काशी विद्यापीठ ने सभा की अध्यक्षता करते हुए कहा-सच में तो गांधी दर्शन को शास्त्रीय रूप देना आवश्यक है और यह काम बाकी है। गांधीजी का दर्शन उनके साध्य-साधन-सिद्धान्त में निहित है। और यह सिद्धान्त उनकी आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और वैयक्तिक जीवन पद्धति में भी अनुस्यूत है। साध्य-साधन का सिद्धान्त सार्वभौम सिद्धान्त है। ये दोनों परस्परापेक्षी हैं। दुनियाँ के ऐतिहासिक विश्लेषण से गांधीजी ने यह प्रतिफल निकाला कि कोई भी युद्ध अन्तिम युद्ध नहीं है और उससे स्थायी शान्ति की स्थापना सम्भव नहीं है । अतएव यदि स्थायी शान्ति अभीप्सित है तो अहिंसात्मक साधन ही इसको उपलब्ध करा सकते हैं। जिस साधन से जितनी वस्तुनिष्ठ सत्य की उपलब्धि होती
परिसंवाद-३
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