Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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'सत्य, अहिंसा और उनके प्रयोग' संगोष्ठी
का संक्षिप्त विवरण
• अखिल-भारतीय खादी ग्रामोद्योग, लखनऊ के तत्वाधान में आयोजित विश्वविद्यालयीय स्तर के समूह परिचची का संयोजन ३० तथा ३१ मार्च १९८० को संस्कृतविश्वविद्यालय के तुलनात्मकदर्शन विभाग द्वारा सम्पन्न हुआ। इसमें मुख्य रूप से तीन विषयों पर उपस्थित विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया गया। वे थे. १) भारतीय दर्शनों की दृष्टि से गांधी विचारों का विवेचन ( २ ) गांधीजी के प्रयोग आधुनिक सन्दर्भ में ( ३ ) सत्य और अहिंसा गांधी जी के दर्शन की दृष्टि में। इसमें काशी के गांधी विचारों के सुप्रसिद्ध तत्त्व चिन्तकों के साथ-साथ तीनों विश्वविद्यालयों के दर्शन, समाज शास्त्र, धर्मशास्त्र विभागों के विद्वान तथा प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी भाग लिया।
समूह परिचर्चा के स्वागत भाषण में संयोजक श्री राधेश्यामधर द्विवेदी ने संस्कृत विश्वविद्यालय की परम्परा की दृष्टि से गांधी विचारों का आकलन करते हुए गांधी जी के शिक्षा, समाज सेवीधर्स, राजनीति एवं अर्थनीति परक प्रश्नों का मुख्य तीन मुद्दों के सन्दर्भ में विवेचन करने पर जोर दिया तथा कहा कि आज की परिस्थिति में गांधी जी पहले की अपेक्षा अधिक उपयोगी हैं और स्वदेशीपन की उनकी भावना की दृष्टि से यह विश्वविद्यालय' उनके विचारों के अधिक अनुकूल है। अतः यहाँ पर गांधीजी के विचारों को परम्परा के सन्दर्भ में समझने का प्रयास किया जाना चाहिए तथा विद्वानों के विचारों से सहायता ले कर गांधी-अध्ययन के लिए यहाँ एक फोरम बनना चाहिए। हमारी परम्परा का अध्यात्म के साथ घनिष्ट सम्बन्ध है और गांधी जी एक अध्यात्मवादी राजनेता तथा सन्त थे। उनका विश्लेषण एवं उनके बताये मार्गों पर चलना परम्परावादी लोगों के लिए अधिक अनुकूल होगा। यदि परम्परागत अध्यात्म तथा गांधीजी का व्यावहारिक पक्ष साथ में मिला दिया जाय तो पुनः इस समय को ध्यान में रखकर नयी सजगता लाई जा सकती है। और गांधीजी को विश्वविद्यालयों में भी प्रतिष्ठित किया जा सकता है।
परिसंवाद-३
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