Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
View full book text
________________
सत्य और अहिंसा की अवधारणा :
सत्य को जिस तरह देखे उसके अनुसार आचरण करे। गांधीजी कहते थे कि अपने सत्य या आंशिक सत्य के अनुसार आचरण करना भी कोई आसान काम नहीं है। उसके लिए अदम्य साहस और धैर्य की आवश्यकता होती है। उनका कहना था कि यद्यपि सत्य का मार्ग कृपाण को धार के समान है किन्तु फिर भी मेरे लिये सबसे आसान और सबसे निकट का रास्ता है। यदि मनुष्य सत्य के पथ पर अडिग होकर ईमानदारी के साथ चले तो बड़ी से बड़ी भूले और बड़े से बड़े अवरोध भी निरर्थक सिद्ध हो जाते हैं। इस प्रकार गांधीजी के लिए समाज में व्यवहार की दृष्टि से आंशिक सत्य ही अर्थपूर्ण है। गांधीजी का सत्य मनुष्य में प्रयोगमिता पर आधारित नैतिक साहस का सृजन करता है। आंशिक या सापेक्षिक सत्य को महत्त्व देकर उन्होंने मनुष्य को निरन्तर अपने को सुधारने तथा सही मार्ग पर निरन्तर चलते रहने के लिए प्रेरणा का आधार प्रदान किया। सत्य का अनुसरण करने वाला एक प्रकार से निरन्तर प्रयोग करता है । अपने विचारों और व्यवहारों को परखता है, अपनी त्रुटियों का विश्लेषण करता है, पुनः संशोधन करके व्यवहार करता है और यह क्रम निरन्तर चलता रहता है। अपनी गलतियों को पहचानने और उनमें सुधार करने का पूरा अवसर मिलता है। गांधीजी का सापेक्षिक सत्य की अवधारणा मानव व्यवहार का उत्तरोत्तर परिमार्जन करती है। गांधी की दृष्टि में निरन्तर सही रास्ते पर चलते रहने के प्रयत्न में ही मनुष्य के जीवन को सार्थकता निहित है । जीवन पथ पर चलने वाले पथिक के लिए सत्य ध्रुव तारे के समान पथ प्रदर्शक है।
सत्य का अनुसरण करना तथा सत्य पर दृढ़ रहना गांधी के लिए मनुष्य का सर्वोच्च पुरुषार्थ है। सत्य पर दृढ़ रहने वाला व्यक्ति एक बेहतर इन्सान बनता है । सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति में सामाजिक शील और विनय का उद्भव होता है। वह समाज को अपने विचार और व्यवहार से सुवासित करता है। अपने समाज का वह एक आदर्श सदस्य होता है क्योंकि क्रोध, क्षुद्र स्वार्थ, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष तथा दुर्भावनायें सत्य का अनुगमन करने में स्वतः क्षीण होकर समाप्त होने लगती है। ऐसा व्यक्ति अपने समाज के अन्य सदस्यों के साथ मानवीय तादात्म्य स्थापित करता है। वह दूसरे के दुःख से दुःखी होता है। वह अपने स्वार्थ का त्याग करता है। वह किसी का शोषण नहीं कर सकता, वह अन्याय नहीं कर सकता, और न अन्याय को सहन कर सकता है। वह त्याग कर सकता है, कष्ट सह सकता है। वह भोगी और क्रूर नहीं हो सकता। सत्यान्वेषी में अहंकार भी नही होता। सत्यान्वेषी व्यक्ति विनम्र होता है। गांधीजी ने कहा है कि सत्य
परिसंवाद-३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org