Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं उसकी भूल अपने आप ठीक हो जायेगी, क्योंकि अहिंसा-वृत्ति का प्रतिफलन निराग्रहवृत्ति है।
(३) अहिंसा की शर्त विवेक है। अहिंसाधारित विवेक शास्त्रवादी और बुद्धिवादी विवेक से अधिक व्यापक एवं स्पष्ट है। अहिंसा कर्माचरण है। प्रयोग से जो विवेक फलित होता है, वह रूढ़ि या आग्रह को पैदा नहीं करता। बुद्धि के सम्बन्ध में गांधी जी कहते हैं कि कुछ ऐसे विषय होते हैं, जिनमें बुद्धि हमें बहुत दूर तक नहीं ले जा सकती। गांधी जी अहिंसात्मक कर्माचरण से प्रसत विवेक को ईश्वर की मान्यता देते हैं। वे शास्त्रों द्वारा व्याख्यात ईश्वर की मान्यता से सन्तुष्ट नहीं है, क्योंकि इस सम्बन्ध में उनका विचार है कि संसार में अनेक असत्यों का प्रतिपादन करने वाले साधनों में एक प्रमुख साधन यह शास्त्र है, जो ईश्वर के स्वरूप का विवेचन करता है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि उनके दर्शन की रीड़ अहिंसा है। अहिंसा एक तीव्र क्रियाशक्ति है, जिसकी सक्रियता एवं गतिशीलता व्यापक तथ्यों की खोज के लिए उसका व्यापक आयाम और उसकी विवेक प्रवणता से स्वतन्त्र निर्णय को सत्य के आकलन का निर्वाध मार्ग मिलता है। प्राचीन शब्दावली में कहना चाहें तो उनकी दार्शनिक विचारधारा को 'कर्म-ज्ञानसमुच्चयवाद' कहा जा सकता है। कर्म और ज्ञान का एकत्र अविनाभाव अहिंसा में एकत्र संग्रहीत है।
परिसंवाद-३
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