Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भवनाएं
छोड़ना शायद उनके बश के बाहर है। यदि वे अपने को अहिंसा का बहुत बड़ा पुजारी मानते हैं तो दूसरे लोग जो आज भूखों मर रहे हैं. जिनके पास अपने तन को ढकने के लिये वस्त्र नहीं है, उनकी सेवा और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति को जैनी भाई क्यों नहीं करते? यह वे नहीं कर पाएगें क्योंकि उनकी दृष्टि में यह हिंसा नहीं है जबकि यह गांधी जी की दृष्टि में हिंसा है । इसके अतिरिक्त भी उपनिषद, मनुस्मृति आदि के अनुसार अहिंसा का अर्थ साधारणतः किसी प्राणी को कष्ट नहीं पहुँचाना या किसी प्राणी का प्राण न लेना ही है। यद्यपि मनुस्मृति में यज्ञ-विधानों में हिंसा की खुली छूट प्रदान की गयी है। प्रायः यह भी कहा जाता है कि मनुस्मृति में प्राणी विशेष के बध की इजाजत है। गांधी जी कहते हैं कि बध की आज्ञा नहीं है । उसके बाद विचार में उन्नति हुई और यह तय हुआ कि कलिकाल में अपवाद न रहे। इसलिये वर्तमान रिवाज हिंसा-विशेष को क्षतव्य मानता है और मनुस्मृति की कितनी ही हिंसा का प्रतिबन्ध करता है, शास्त्र ने इतनी छूट रखी है। उससे आगे बढ़ने को दलील स्पष्टतः गलत है, धर्म संयम में है, स्वच्छन्दता में नहीं। जो मनुष्य शास्त्र की दी हुई छूट से लाभ नहीं उठाता, वह धन्यवाद का पात्र है। संयम की कोई सीमा नहीं। संयम का स्वागत दुनिया के तमाम शास्त्र करते हैं। xx अहिंसा धर्म का पालन करने वाला निरंतर जागरूक रहकर अपने हृदय बल को बढ़ावे और प्राप्त छूटों के क्षेत्र को संकुचित करता जाय । भोग हरगिज धर्म नहीं है। संसार का ज्ञानमय त्याग ही मोक्ष-प्राप्ति है। संसार का सर्वथा त्याग हिमालय के शिखर पर भी नहीं है। हृदय की गुफा सच्ची गुफा है। मनुष्य को चाहिए कि वह डसमें छिपकर सुरक्षित रहकर संसार में रहते हुए भी उससे अलिप्त रहकर अनिवार्य कामों में प्रवृत्त होते हुए वितरण करें।' जगत के मनीषियों और तत्त्वज्ञों ने साधन को पकड़ कर साध्य को प्राप्त किया है, किन्तु गांधी जी की विचित्र बात यह है कि सत्य उनके जीवन में सहज रूप में आया और अहिंसा बाद में बड़े प्रयत्न से आयी। यद्यपि कि बाह्य दृष्टि से उनकी यह खोज विचित्र सी लगती है, परन्तु आन्तरिक दृष्ट से साध्य या साधन का अभेद होने से दोनों ही स्थितियाँ एक ही हैं। इसीलिये गांधी जी के दर्शन में सत्य और अहिंसा प्रायः साथ-साथ ही पाये जाते हैं।
यद्यपि मेरा उद्देश्य अन्य धर्मों की अहिंसा का इतिहास बताना नहीं है। मेरा उद्देश्य गांधी जी की अहिंसा का मात्र व्यावहारिक रूप दिखाने का प्रयास है। महात्मा गांधी की अहिंसा कोई अव्यावहारिक वस्तु नहीं है, परन्तु यह एक मानवीय स्वभाव और मानवीय हृदय में जीवित जाग्रत क्रियाशील सद्गुण है। १. हिन्दी नवजीवन ३० अगस्त १९२५
परिसंवाद-३
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