Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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सत्य और अहिंसा : गांधी की दृष्टि में
न्याश्रित रहते हैं । ज्ञान ज्ञान के लिए नहीं, व्यवहार और प्रवचन के लिए है । भारत में निवृत्ति मार्ग के अनुयायी एवं अनासक्त महर्षियों का अभाव नहीं रहा है । इन लोगों ने जन्म ग्रहण का भारतीय जनमन को विरक्ति के लिए प्रबुद्ध किया । प्रजा वर्ग ऐहिक उन्नति और सम्पत्ति साधन में आग्रह से शून्य था । इस विरक्ति ने उस दिन अपनी मर्यादा का अतिक्रमण किया, जब भारत के प्रबल प्रतापी राजागण वैराग्य साधन में तत्पर उपदेष्टाओं के आसन को राजसिंहासन की अपेक्षा अधिक आदर के साथ देखने के लिए बाध्य हुए। वैराग्य सम्पन्न राजाओं का प्रभुत्व छिन्न-भिन्न हो गया और आध्यात्मिक शक्ति भी उसके साथ ही क्षीणतर हो गयी । अध्यात्मिक समृद्धि के आवेश में राजधर्म इतना उपेक्षित हुआ कि स्वयं ही अपने रक्षक के बिना विनष्ट हो गया ।
एकान्त वैराग्य प्रधान निवृत्तिमार्ग परायण धर्म ने अनधिकारी लोगों को वैराग्यसाधनों में वृत्त किया। आध्यात्मिक शक्ति क्षात्रशक्ति दोनों का समन्वय ऐहिक और आध्यात्मिक अभ्युदय का कारण होती है ।
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नाब्रह्म क्षत्रमृध्नोति नाक्षत्रं वर्द्धते तपः ।
परस्पर समन्वय से दूर परम पुरुषार्थ की आकांक्षा दुराकांक्षा से अभिभूत होने पर ऐहिक और पारलौकिक दोनों ही सम्पत्तियाँ अस्तव्यस्त हो जाती हैं । ऐहिक धूलिसात हो जाता है और मुक्ति का मार्ग कण्टकाकीर्ण हो जाता है ।
भारतीय दृष्टि सार्वभौम विकास की दृष्टि से दर्शन एवं तन्मूलक आचार का विश्लेषण प्रस्तुत करती है विशेष जाति या समुदाय विशेष की और कल्याण की दृष्टि भेद को सम्बल देती है । समुदाय का हित ही व्यक्ति का हित है, यह नीतिशास्त्र का सामान्य प्रतिपादन है । मिल, वेन्थम और इंग्लैण्ड के हितवादी नीतिज्ञ व्यक्तियों ने बहुत आदमियों की भलाई को ही व्यक्तिगत भलाई का कारण सिद्धान्तरूप से माना है । नीतिशास्त्रकार एवं धर्मशास्त्रकारों ने इसी तत्त्व का पुनः प्रतिपादन किया है ।
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भारतवासी प्राचीन काल से अहिंसा धर्म के गौरव और कल्याणकारिता का प्रचार करते रहे हैं । वेद, उपनिषद् से लेकर पुराण, इतिहास, काव्य साहित्य सभी में अहिंसा, सत्य, अस्तेय आदि धर्मों की महिमा गाई हैं एवं कोने-कोने में इसका प्रचार प्रसार किया है । सम्प्रति महात्मा गांधी ने अहिंसा और सत्य की नीव पर भारतवर्ष की स्वतन्त्रता का निर्माण किया । किन्तु अहिंसा और सत्य का स्वरूप सहजबुद्धि से
परिसंवाद - ३
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