Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं असन्तुष्टा द्विजा नष्टाः सन्तुष्टाश्च महीभृतः । अहिंसा की आड़ में असहयोग आन्दोलन जैसे शस्त्र का प्रयोग वास्तविक दुष्ट के दमन में न होकर रागमानमदान्धता में हो रहा है। अर्थात् अदुष्ट भी इससे दण्डित होते हों तो नीति की, असफलता ही समझी जायेगी। इसलिये दार्शनिकों ने अहिंसा का आश्रय उच्चतर ब्रह्म निष्णात और उच्चतर भक्तिसंपन्नों में होने के लिये कहा है। औरों के लिये हिंसा एवं अहिंसा को मर्यादित कर सामाजिक व्यवस्था को उन्नत बनाते हुए संघटना की नीव को दृढमूल किया है। इस रीति से गान्धीजी का अहिंसावाद भी समन्वित किया जाये तो वह भी दार्शनिकों के मत में ग्राह्य है अन्यथा नहीं है।
परिसंवाद-३
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