Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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गांधी जी की दृष्टि में
गांधीजी ने उन नैतिक नियमों का विवेचन किया है जिनका पालन मनुष्य को व्रत की भाँति करना चाहिये । इन नैतिक नियमों का पालन आत्मानुभूति का सच्चा मार्ग है । व्रत का अर्थ है - जो कार्य करना उचित है, विघ्नों को सहन करते हुए उसे करना, व्रत शक्ति के स्रोत हैं । वे नैतिक नियमों पर चलने के लिए अविचल निश्चय के द्योतक हैं ।
" सत्य की व्याख्या "
आचार्य पं० रामप्रसाद त्रिपाठी
व्रत लेने की इच्छा न होना दुर्बलता की सूचना है। उनकी दृष्टि में व्रतों में सत्य का प्रथम स्थान है । वह गांधीजी के जीवन और दर्शन का ध्रुवतारा है ।
गांधीजी दो प्रकार का सत्य बताते थे ( १ ) साधनरूप सत्य - जैसा कि व्यक्ति परिस्थिति विशेष में उसे जान पाता है । ( २ ) साध्यरूप सत्य - निरपेक्ष, सार्वभौम, पूर्णसत्य - जो देश तथा काल से परे है, ईश्वर स्वरूप है । जिसका वास्तव में अस्तित्व है जिसमें समस्त ज्ञान सम्मिलित है; जो शाश्वत आनन्द का स्रोत है । इसीलिये सत्य को सच्चिदानन्द रूप में कहा जाता है ।
गांधीजी ईश्वर के सत्यरूप के ही पुजारी थे, उसके अतिरिक्त अन्य किसी के नहीं, उनका विश्वास था कि सत्य की विजय होती है असत्य की नहीं क्योंकि असत्य का अस्तित्व ही नहीं होता तो विजय की क्या आशा ? सत्य की अनुभूति के लिये मनुष्य को सत्याग्रही बनना चाहिये ।" जब शुद्ध आचरण अज्ञान को दूर कर देता है, तो सत्य स्पष्ट प्रकाशित होता है ।
आत्मीयों पर पक्षपात करना, धोखा देना, वास्तविकता से घटा बढ़ाकर बताना, या दबाना, टालमटोल करना, आदि के लिये सत्य में कोई स्थान नहीं है ।
( १ ) आत्म शुद्धि पृ० ६२.६३ ।
(२) आत्मशुद्धि पृ० २ आत्मकथा भाग १ पृ० ७ ।
परिसंवाद - ३
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