Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय दर्शन में गान्धी की अहिंसा
आचार्य पं० विश्वनाथ शास्त्री दातार बन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शङ्कररुपिणम् । यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते ॥
गान्धीजी की अहिंसा आदि पद्धतियों के प्रति दार्शनिक सिद्धान्तों का मतैक्य किस अंश में है तथा किस अंश में नहीं, इन दो प्रश्नों पर विचार व्यक्त किया जा
वर्तमान समाज गान्धी जी के अहिंसादिसिद्धान्त से परिचित है। उसी सिद्धान्त के निरूपण में मेरे कथन को विधेयता न होगी। इसलिये भारतीय दार्शनिक सिद्धान्त की रूप रेखा को व्यक्त किया जा रहा है।
भारतीय दर्शन की दृष्टि दो विभागों में विभक्त हैं। एक स्वसिद्धान्त का निरूपण करना। दूसरा सामाजिक स्थिति को देखते हुए वर्णाश्रमियों की मूल स्थिति को दृढ़ बनाने के लिये सन्मार्ग का प्रदर्शन कराना।
उनमें कतिपय दर्शन ऐसे हैं जो अहिंसादि महाव्रत को अपनाने के लिये उपदेश देते हैं। उक्त उपदेश को प्रत्येक व्यक्ति इष्ट समझता है तो यह तभी सम्भव होगा. जब कि प्रत्येक व्यक्ति निराकांक्ष हो बोध में ही रमता रहे तथा काम तत्त्व से वह सर्वथा असंस्पृष्ट हो। यदि समाज का प्रत्येक व्यक्ति वैसा न हो तो कतिपय व्यक्ति ही अहिंसादिमहाव्रत के संकल्प को अपनाकर दार्शनिक सिद्धान्त का आदर्श उपस्थापित करते हैं। दार्शनिकों ने अहिंसादिधर्म को महाव्रत इसलिये कहा है कि देशकाल की सीमा से ये आवद्ध नहीं हैं। यह व्रत दार्शनिकों के मत में सफल माना जाता है जब सभी पशु-पक्षि आदि प्राणी व्रती के सान्निध्य में बैर त्यागते हों।
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