Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
View full book text
________________
भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
अहिंसा : व्यक्ति और समूह
केवल व्यक्ति जीवन में अहिंसा प्रतिष्ठित हो सकती है, इससे गांधी जी सहमत नहीं थे। वे कहते हैं कि यह मानना इतिहास की गहरी भूल है कि अहिंसा केवल व्यक्तियों के लिए अच्छी है, जनसमूह के लिए नहीं। इस सिद्धान्त से गांधी जी व्यष्टि
और समष्टि तथा व्यवहार और अध्यात्म के बीच के अन्तर को बहुत कुछ दूर करते हैं। इस स्थिति में गांधी जी कहते हैं कि जो धर्म व्यक्ति के साथ खत्म हो जाता है वह मेरे काम का नहीं है। मुझे यह विश्वास नहीं है कि उसके पड़ोसी जब दुःख में डूबे हुए हैं, तब किसी व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है। इसलिए गांधी जी मानते हैं कि यदि एक मनष्य की आध्यात्मिक उन्नति होती है, तो उसके साथ सारी दुनियां की उन्नति होती है । इसी प्रकार एक आदमी का पतन होता है तो उस अंश में संसार का पतन होता है।
गांधीजी कहते हैं धर्म व्यक्ति की इकाई से प्रारम्भ होता है, इसलिए प्रारम्भ से ही वह व्यवहार्य हो जाता है। धर्म की साधना है अपने को परहित यानी समाजहित में घुला देना। इस तरह धर्म परमार्थ सत्य के लिए अपनी आहुति करने, अपने को समर्पित एवं विलीन करने का अभ्यास सुझा कर मानों उस कीटाणु को निष्प्राण करता है, जहां अर्थ-लिप्सा और शोषण-वृत्ति का मूल है।
गांधी जी की धार्मिक दृष्टि का स्पष्टीकरण उनके अहिंसा के नये प्रयोगों के द्वारा होता है। गांधी जी के सामने दो बातें स्पष्ट थीं-- एक यह कि अहिंसा एक विकसन-शील प्रक्रिया है और सत्य के लिए अहिंसा अनिवार्य है, इसलिए सत्य, अहिंसा
और धर्म गतिशील एवं सर्जनशील तत्त्व हैं। दूसरा यह कि अहिंसा का प्रयोग व्यक्तिगत ही नहीं सामूहिक भी हो सकता है। जीवन : व्यक्ति और अखण्डता
उक्त दो मान्यताओं से सम्बन्धित दो और बातें भी हैं, जो उनके अहिंसात्मक प्रयोग दर्शन का आधार हैं:-१. व्यक्ति का महत्व और २. मानवजीवन की अखण्डता का सिद्धान्त । व्यक्ति की दृष्टि से गांधी जी संस्था की जगह उसके गुण के महत्त्व को स्वीकार करते हैं। उनके अनुसार हर एक बड़े ध्येय के लिए जूझने वालों की संख्या का महत्त्व नहीं होता, बल्कि जिन गुणों से वे बने होते हैं, वे गुण ही निर्णायक होते हैं। गांधी जी जब व्यक्ति पर इतना जोर देते हैं, और साथ ही अहिंसा
परिसंवाद-३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org