Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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गांधीजी का नीतिधर्म
जो व्यक्ति को धर्म्य, न्याय्य, योग्य प्रतीत होता है और जिसे स्वीकार करते हुए उसे लज्जा नहीं आती, प्रत्युत जिसे न करने पर ही सम्मानपूर्वक जी नहीं सकता, वह उसके लिए सत्य है । यह सत्य या परमेश्वर सगुण रूप है । गांधी जी कहते हैं कि सत्य अनन्त है, इसकी खोज का कभी अन्त नहीं होगा । इस स्थिति में सत्य के अन्वेषी को विविधता की उलझन में न पड़कर उसे अपने जीवन में जो बड़ी या छोटी पूर्ण या तुच्छ सी प्रवृत्तियां करनी पड़े, उन्हीं में सत्य का अन्वेषण करें। इस प्रकार सत्य का आग्रह ही परमेश्वर या सत्य का सगुण रूप है, जो मनुष्य के अपने हाथ में है यह रहस्य नहीं यथार्थ है । वह साधन है और वही प्रकर्ष के साथ साध्य का रूप ग्रहण कर लेता है । इस रूप से गांधी-दर्शन में सत्य दो प्रकार का है परसत्य या निर्गुण सत्य = परमेश्वर, और अपरसत्य या सगुण सत्य = सत्याग्रह |
सत्याग्रह
सत्याग्रह का आयाम बहुत व्यापक है, जिसमें संगठन और धर्म, संघर्ष और प्रतिरोध के लिए पर्याप्त अवसर है। निर्वाण के साथ साथ सत्याग्रह विरोध का भी मार्ग है । गांधी जी के विचार में अपने आसपास फैले हुए असत्य, अन्याय या अधर्म के प्रति उदासीन भावना रखने वाला व्यक्ति सत्य का साक्षात्कार नहीं कर सकता । अतः असत्य, अन्याय और अधर्म का प्रतिकार भी सत्याग्रह का आवश्यक अंग है । बुराई के प्रति उदासीनता या अप्रतिरोध सत्यान्वेषी के लिए नितान्त वर्जित है । सत्याग्रह सत्य की अविश्रान्त खोज है । जितना ही सत्य जान पड़े उसका आचरण ही सत्याग्रह है । गांधी जी के अनुसार यही परमेश्वर के साक्षात्कार का मार्ग है । सत्याग्रही को इसका पूरा भान रहता है कि एक को जो सत्य जान पड़ता है, वही दूसरे को असत्य जान पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में सत्य के अन्वेषी को अपने विरोधी के प्रति हिंसा करने की गुंजायश नहीं रह जाती। अपने विरोधी की गलती को उसे अपने धर्म और सहानुभूति द्वारा ही दूर करना होता है। इस प्रकार सत्याग्रह का निष्कर्ष है विरोधी को पीड़ा देकर नहीं, अपितु स्वयं कष्ट उठाकर सत्य की रक्षा करना । इस प्रकार अहिंसा वह प्रकाश है, जो सत्य को निखारता है । गांधी जी की अहिंसा और सत्य एक ही हैं। अहिंसा की पराकाष्ठा ही सत्य है । अहिंसा सत्य के साक्षात्कार का साधन है जिससे सर्वव्यापी सत्य का आकलन किया जा सकता है। गांधी जी सत्य और अहिंसा के बीच यद्यपि साध्य-साधन का सम्बन्ध मानते हैं, किन्तु उनमें भेद नहीं मानते । समझने के लिए यदि भेद कहते हैं तो बीज और वृक्ष के समान ।
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परिसंवाद - ३
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