Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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गांधी चिन्तन की सार्थकता
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सौ कुटुम्ब सारे गांव की खेती में सहयोग से करें, और उसकी आमदनी आपस में बांट लिया करें । 'गांधीजी यह भी चाहते थे कि सहयोग की पद्धति द्वारा गउओं का पालन हो तथा दूध के उत्पादन के लिए सहकारी डेरी' ( दुग्धशालाएं ) स्थापित की जायें । वास्तव में आत्मनियन्त्रित स्वतन्त्र सहकारिता की भावना ही उनके ग्रामस्वराज की कल्पना का आधार है ।
गांधीजी समाज और राज्य में भेद करते थे । समाज को प्रेम और राज्य को हिंसा पर आश्रित बताते थे । अतः वह राज्य को विलीन कर समाज को बनाये रखना चाहते थे । इस तरह वे राज्यविहीन समाज के समर्थक अराजकतावादी थे । उनकी अराजकता अहं के बजाय प्रेम पर आश्रित है। प्रेम आदि मानवीय शक्तियों की स्वच्छन्द अभिव्यक्ति ही उसका लक्ष्य है । गांधीजी जानते थे कि अहं, ईर्ष्या, द्वेष आदि निकृष्ट अर्थात् तामसिक प्रवृत्तियों पर आत्मनियन्त्रण के बाद ही प्रेम आदि उदात्त भावनाओं की स्वच्छन्द अभिव्यक्ति सम्भव है । वह यह भी समझते थे कि अन्याय से समन्वित समाज के लिए हिंसा का सर्वथा परित्याग असम्भव है । समता तथा सामाजिक न्याय पर आश्रित समाज ही अहिंसात्मक हो सकता है । ऐसे समाज में ही मानव अपनी सहज सामाजिक प्रवृत्तियों द्वारा स्वच्छन्द स्वतन्त्र सामाजिक जीवन बिता सकता है । इसीलिये वह कहते थे कि जब 'राष्ट्रीय जीवन इतना परिशुद्ध हो कि वह आत्म नियन्त्रित हो जाय' तभी राज्य विहीन समाज सम्भव है । उनकी यह भी धारणा थी कि ग्रामीण समाज ही अहिंसात्मक हो सकता है । सरल ग्रामीण जीवन के लिए ही हिंसा का परित्याग सम्भव है । वह जानते थे कि केन्द्रित व्यवस्था की तुलना में विकेन्द्रित राज्य व्यवस्था का अहिंसात्मक विलीनीकरण अधिक सम्भ है तथा अधिनायकतन्त्र, नृपतन्त्र आदि राजनीतिक व्यवस्थाओं की तुलना में विकेन्द्रित लोकतन्त्र के लिए कम हिंसात्मक होना अधिक सम्भव है ।
इसीलिए भारत को राजनीतिक स्वराज्य मिल जाने के बाद उन्होंने राज्य के विलयन की बात न करके परामर्श दिया कि ( १ ) शुद्ध लोकतान्त्रिक सिद्धान्तों के आधार पर भारतीय राज्य का गठन किया जाय तथा शान्तिमय लोकतान्त्रिक उपायों द्वारा बेकारी, विषमता, दरिद्रता, भ्रष्टाचार आदि दुर्गुणों का निराकरण कर भारतीय जीवन और समाज को सुखमय और समुत्कृष्ट बनाया जाय, ( २ ) स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा आर्थिक और सामाजिक स्वराज्य के लिए प्रयत्न किया जाय, (३) गांव स्वराज्य की रचना की जाय, ( ४ ) राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता अपने
परिसंवाद- ३
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