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घंटियों के रव बालक को बहलाने में सफल न हो सके । तभी एक रात मां को सपने में यह अलिन्द सांगोपांग दिखाई पड़ा था । एक अतिथि शिल्पी एक दिन एकाएक राजद्वार पर प्रकट हुआ । ठीक माँ के उस स्वप्न के अनुरूप ही, इस अलिन्द का निर्माण उसने कर दिया। दीवारें टूट गई : खुली दिशाओं के बीच पालना मूलने लगा । बालक-देवता ने प्रसन्न भाव से पालने में लेटे रहना स्वीकार लिया
.. हिरण्यवती की लहरें सारा दिन जैसे बालक पर अपनी नीली छाया डालती हुई बहती रहती हैं। दूरगामी वनों के मर्मर-संगीत की लय और ताल पर बच्चे के अंग थिरकते रहते हैं। उसकी नीलाभ काली आँखों में समुद्र की अगाध गहराई है : पर साथ ही वे तरल स्फटिक जल की तरह पादरी भी हैं। तमाम प्रकृति अपनी सूक्ष्मतम जीव-सृष्टि के साथ मानो उन आँखों में सदा झलकती रहती है। आकाश जैसे उन आँखों की कोरें बन गया है : और समुद्र उन पुतलियों की गति में बिछलता रहता है। चाहे जब बालक की आँखें अपलक और स्थिर हो जाती हैं : पुतलियां एकाग्र और निश्चल। शिशु के अंग एक विचित्र ध्यानमुद्रा में समतल और अवस्थित हो रहते हैं। बड़ी देर तक यह लीला चलती है। माँ चिन्ता से उद्विग्न हो जाती है । सारा अन्तःपुर बालक को चंचल करने की चेष्टा में हार जाता है। एक से एक अनोखे रागों में लोरियाँ गाई जाती हैं। बड़े-बड़े संगीतज्ञ अपनी तमाम विद्याओं का जोर लगा कर, वादन-गायन करते हैं। दिव्य शंख और घंटा-घड़ियाल बजाये जाते हैं। पर बालक टस से मस नहीं होता। फिर अपनी ही स्वतंत्र मौज से जाने कब वह इतने उद्दाम वेग और चांचल्य से हाथ-पैर उछालता है कि पालने में मानो स्वयम्भु-रमण समुद्र खेलने आ गया हो।
प्रायः शिशु हाथ के अंगूठे का धावन करते हैं । पर इस छौने को इतना सुलभ धावन पसन्द नहीं। पूरे दायें पैर को अपने ऊपर प्रत्यंचा की तरह तान कर, वह मस्ती से पैर का अंगूठा चूसता रहता है। मां के स्तन दुध की उमड़न से असह्य हो उठते हैं : पर कई बार शिशु उन्हें धाने से मुकर जाता है। माँ अपनी वह पीड़ा किसे बताये । उसकी आँखों से अविरल आँसू बहने लगते हैं। और कभी यह होता है कि एकाएक माँ-माँ की अविराम टेर लगा देता है। मां पुचकार-चुम्बन से उसे शान्त करने की अनेक चेष्टायें करती हैं। तभी वह नटखट, दुरन्त छौना अपनी नन्हीं उँगलियों से स्वयं ही माँ का आँचल खसका कर, कंचुकिबन्द तोड़ देता है,
और अविकल ओठों से ऐसा कसकर धावन करता है, कि माँ को लगता है, जैसे उसकी समूची देह दूध बनकर उमड़ रही है। .झर-झर आँखें झरने लगती हैं, और
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