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की उत्ताल तरंगें झलमला रही थीं। जम्बूद्वीप के केन्द्रीय राजनगर श्रावस्ती के अधिपति की हर इच्छा पूरी होकर ही रहती है । अपनी विश्व व्यापारी केन्द्रीय शक्ति और अपने संबंधों के राजनीतिक आतंकों के बल पर, उसने गान्धारराज को विवश कर दिया । और गान्धार की स्वातंत्र्य बलि के रूप में कलिंगसेना स्वयम्वरिता होकर उन्हें समर्पित हो गयी । गान्धारी का उदात्त प्रेमी अजेय बाहुबलि उदयन, प्रिया के इंगित पर चुप रह गया । कलिंग ने अपने पैत्रिक गणतंत्र की बलिवेदी पर अपने हृदय को चढ़ा दिया अपनी आत्मा उदयन को सौंप कर गांधार की उस परम रूपसी राजबाला ने अपनी देह को प्रसेनजित की चरणदासी बना दिया है के लिए मेरे मन में अपार करुणा है । बहुत करुण होगा इस अन्धकार - रात्रि का अन्त ! और गान्धारी के समकक्ष ही मुझे याद आ रही हैं देवी आम्रपाली । अपने-अपने गणतंत्रों की रक्षावेदी पर उत्सर्गित दो बलि- कन्याएँ ।
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। इस मोहान्ध नृपति
मुझे बहुत प्रिय लगता है, मौसी मृगावती का भुवनमोहन पुत्र उदयन । अवन्तीनाथ चन्द्रप्रद्योत के प्रचण्ड प्रताप की चुनौती पर वह उज्जनयी पर
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मान होने को विवश हुआ। अपनी कुंजर - विमोहिनी विद्या और अमोघ कामचितवन के बल पर वह अवन्ति की उर्वशी राजकन्या वासवदत्ता का हरण कर लाया । और उसे कौशाम्बी की सिंहासनेश्वरी बना दिया । वासवदत्त । की रूपश्री का गुणगान अन्तरिक्षों के गन्धर्व तक करते हैं । और उदयन की संगीतमूर्छाओं पर किन्नरियाँ मण्डलाती रहती हैं । अपनी कुंजर - विमोहिनी वीणा के वादन से वह दुर्दान्त हस्तिवनों को कीलित कर देता है । सुनता हूँ, गन्धर्वराज चित्ररथ स्वयम् उसका वीणा वादन सुनने आते हैं, निस्तब्ध रात्रि के मध्य प्रहरों में । और वासवदत्ता की घोषा - वीणा के साथ जब उदयन अपनी कुंजरविमोहिनी वीणा की युगलबन्दी करता है, तो सृष्टि का कण-कण एक महामिलन के आनन्द में समाधिस्थ हो जाता है । सौन्दर्य, कला, विद्या, स्वप्न, ज्ञान और भावना का ऐसा समन्वय-पुरुष समकालीन विश्व में शायद दूसरा नहीं है । कलाकार है उदयन । वह कविता और स्वप्न को जीता है । इसी से उसके प्रणय और विलास में भी चिद्विलास की तन्मय गहराई और आभा है । भोग में आचूड़ डूबा होकर भी, वह सहज ही एक रसयोगी है, भावयोगी है, सौन्दर्य-योगी है । जानता हूँ, उदयन, तुम आओगे एक दिन मेरे पास ! तुम्हारी अविकल्प तन्मयता ने तुम्हें भोग में ही योग का अनुभव करा दिया है । परापूर्व के राजयोगीश्वर भरत का स्मरण हो आया है । तुम्हारी स्वप्न नगरी कौशाम्बी में आऊँगा एक दिन । तुम्हारे विलास कक्ष की शिल्पित शाल-भंजिकाएँ उस क्षण चलायमान हो उठेंगी ।
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