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परा-ऐतिहासिक इतिहास-विधाता
· · वह चीत्कार मेरे अतल में भिद गई है । ऐसा लगा था, कि तमाम चराचर उसके आघात से बहरे हो गये हैं। उत्तरोत्तर वह अधिक तीखी और लोमहर्षी होती चली गई । एक अन्तहीन आर्तनाद था वह । उस क्षण स्पष्ट बोध हुआ, कि समस्त आर्यावर्त की आत्मा आक्रन्द कर उठी है।
मेरा सारथी जब यह नया काम्बोजी अश्व ले कर आया था, तो मैंने तुरन्त इसे स्वीकार लिया था। यह अश्व मानो मेरे पास भेजा हुआ आया था। कोई भी चीज़ चुनने या लेने की स्पृहा मुझ में कभी नहीं रही है । पर यह नया घोड़ा मुझ से अस्वीकारते न बना ।
और उस दिन, मानो उस अश्व ने ही पुकारा था, कि मैं उस पर सवार होकर निकल पड़। यों भी जब निकलता हैं, ऐसे ही अचानक कोई अकारण गतिमता मुझे आक्रान्त कर लेती है। और मैं अलक्ष्य दिशा में चल पड़ता हूँ। __ सो उस दिन भी इस नये काम्बोजी अश्व ने जब हिनहिना कर अपने फड़फड़ाते पट्ठों पर मुझे धारण किया, तो मेरी जाँचे एक प्रबल आरोहण के वेग से छटपटा उठी थीं। • तीर की तरह वह धावमान था। कितनी राहें, दिशाएँ उसने बदलीं, उन पर मेरा लक्ष्य नहीं था। मानो एक निर्धारित दिशा में वह मुझे उड़ाये ले जा रहा था । कितने रात-दिन या घटिकाएँ बीतीं, यह कालबोध तक मेरी चेतना में नहीं था।
कोसल को पार कर, अहिछत्र के सीमान्त पर पहुँचा कि हठात् एक चीत्कार घिरती साँझ के धुंधलके को विदीर्ण करती हुई जैसे क्षितिज के मण्डल को बेधने लगी। कण-कण त्राहिमाम् पुकार उठा। वज्रवृषभ-नाराच-संहनन के धारी मेरे शरीर की अघात्य हड्डियों के बन्ध भी उससे तड़तड़ा उठे ।
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