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में से गुजरते हुए देखा : आईने-सी स्वच्छ सड़क पर दोनों ओर की वनराजि मानो पन्ने की शिलाओं से तराश दी गई है। दोनों ओर के उपान्तों में झाँक रहीं थीं ठोरठोर कमलों भरी वन-सरसियाँ । कास फलों के तटों वाली विजनवती नदियाँ। हंसों, चक्रवाकों, हरिणों के युगल-विहार। एक अद्भुत निर्मलता, लयात्मकता
और पूर्णत्व का बोध हुआ। वैशालिकों की सौन्दर्य-चेतना पर मुग्ध हुए बिना न रह. सका। अलौकिक लगा यह प्रदेश : कोई स्वर्ग-पटल ही पृथ्वी पर अनायास जैसे उतर आया है। ___एक ज़रा ऊँचे भूभाग के शीर्ष पर जब हमारे रथ आये, तो अप्रत्याशित ही दूर पर देव-नगरी वैशाली गर्वोन्नत खड़ी दिखाई पड़ी। अन्तर-मध्यभाग में सात हज़ार सुवर्ण कलशों वाले उत्तुंग प्रासाद आकाशतटी को चूम रहे हैं। उसके बाद ज़रा नीचाई में चौदह हजार रौप्य कलशों वाले सौध जगमगा रहे हैं। और तीसरे मण्डल में उनसे किंचित् नीचे इक्कीस हजार ताम्र कलशों वाले श्वेत भवन बादलों पर सोपान रच रहे हैं। नारद की उजली कोमल धूप में भव्य धवल नगर-परकोट, कँगूरे, सिंहद्वार, वातायन, और सारी भवन-मालाओं को अतिक्रान्त करते जिनमन्दिरों के रत्न-जटित शिखरों पर केशरिया-श्वेत ध्वजाएँ उड्डीयमान हैं। इस मण्डलाकार नगर की मनोज्ञ दिव्य रचना में एक ब्रह्माण्डीय समग्रता की अनुभूति हो रही है।
· · परापूर्वकाल का स्मरण हो आया। सहस्रों वर्ष पूर्व त्रिकाल सूर्योदयी इक्ष्वाकु वंश के राजा तृणबिन्दु ने, अप्सरा अलम्बुषा के गर्भ में राजा विशाल को उत्पन्न किया था। उसी अप्सराजात राजपुत्र विशाल की लोकोत्तर कल्पना में से उसकी यह राजनगरी विशाला आविर्भूत हुई थी। । पृथ्वी पर उर्वशी की रूपज्योति का एक अवशिष्ट टुकड़ा है यह वैशाली। उसके केशपाश से अकस्मात् चू पड़ा एक सुवर्ण कमल । विश्वामित्र के साथ जनकपुरी जाते हुए भगवान रामचन्द्र, विदेहों की इस वैभव-नगरी को देख कर मुग्ध हो गये थे। सूर्यवंश के इस ऐश्वर्य विस्तार को उन्होंने गौरवभरी आँखों से निहारा था। और मैं इस विशाला का बेटा हो कर भी, पहली बार इसके द्वार पर ठीक अतिथि की तरह आया हूँ।
___ . . 'एकाएक पाया कि हम रत्नों, मणि-जालों और फूल-जालियों के वितानों से गुजर रहे हैं। अगल-बगल की पुष्पित वृक्ष-वीथियों को ही प्रियंगु-लताओं से गूंथ कर तोरणों की एक अन्तहीन सरणि चली गई है। जाने कितने ही रंगों के
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