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अपार शस्त्रों और सैन्यों से तुम निहत्थे आदमी अधिक ख़तरनाक हो ! क्योंकि शस्त्र बल से चिर दमित और आतंकित पृथ्वी और प्रजाएँ, एक निहत्थे पुरुष - पुंगव को, तमाम शस्त्रधारियों के विरुद्ध अपने पक्ष में उठते देख कर, तुम्हारे पीछे खड़ी हो गई हैं। तमाम दुनिया की सामूहिक शस्त्र - शक्ति को, अकेला चुनौती देने वाला व्यक्ति, आज तक तो पुराण- इतिहास में सुना नहीं गया ।'
'अच्छा हुआ सोमेश्वर, तुमने समय पर सावधान कर दिया मुझे ! इस मौलिक और संयुक्त शस्त्र - सत्ता का सामना करने के लिए मुझे भी तो कोई मौलिक और अमोघ अस्त्र बल खोज निकालना होगा । सोचता हूँ मेरी निष्कवच और नग्न काया, उसके मुक़ाबले कम नहीं पड़ेगी । और सुनाओ, चण्डप्रद्योत, उदयन, प्रसेनजित, श्रेणिकराज क्या कहते हैं ? '
'चण्डप्रद्योत तो सदा का उद्दण्ड है ही । समय से पूर्व ही वह क्षिप्रा के पानी पर अपना डण्डा बजा रहा है । कहता है - 'लिच्छवियों की वैशाली में कुलद्रोही जन्मा हैं। दूध के दाँत हैं अभी, और दहाड़ रहा है सिंह बन कर । मरने को मचल पड़ा है नादान लड़का ! पर तुम्हारा भाई वह वत्सराज उदयन बड़ा रोचक और विचित्र युवक है । जब से उसने यह उदन्त सुना है, वह अपनी मातंग-विमोहिनी Pater बजाने में और भी गहराई से तल्लीन हो गया है, और सुन्दरियों के स्वप्नलोक में पूरा खो गया है । कहता है- 'ठीक कहता है वर्द्धमान- कितना ही लोहा बजाओ, लोहे पर टिका क्षणभंगुर हिंसक साम्राज्य एक दिन टूटेगा ही । सत्य और नित्य है केवल संगीत और सौन्दर्य का साम्राज्य । मेरे लिए वही काफी है ।' विचित्र है न यह उदयन, वर्द्धमान !'
'जानता हूँ, सोम, उदयन विलक्षण है । उसकी वीणा के सप्तक पर मेरे स्वर बजेंगे । यह आज का उद्विलासी उदयन, कल का चिद्विलासी है। मुझ अधिक यह कोई नहीं जानता । और श्रावस्ती क्या कहती है ?
'प्रसेनजित तो, जानते हो आयुष्यमान, कापुरुष है। पुरोहितों, वैद्यों और नियों के भरोसे जीता है। जब से तुम्हारा सन्देश उसने सुना है, चाटु और पेटू ब्राह्मणों के बहकावे में आ कर राजसूय यज्ञ की तैयारी कर रहा है, ताकि सेंतमेंत में सारी पृथ्वी पर उसका साम्राज्य स्थापित हो जाये । सुरा और सुन्दरी में रात दिन डूबा है, और वैशाली के सारे शत्रुओं को श्रावस्ती में स्कन्धावार रचने के लिए निमंत्रण दे रहा है । अंगराज दधिवाहन भयभीत हैं कि तुम चम्पा के तहखानों लिये को अतुल सुवर्णराशि रास्तों पर ला कर दरिद्रों को लुटा देना चाहते हो । मगर उनकी बेटी शीलचन्दना ऐसी भाविक भक्त है तुम्हारी कि, रो-रो कर वह सदा तुम्हें ही पुकारती रहती है ।'
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