Book Title: Anuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 01
Author(s): Virendrakumar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 360
________________ के क्षेत्रों में। मेरे जी में एक दुर्द्धर्ष संकल्प जागा कि, जो महावीर मूर्तिमान विश्व-तत्त्व होकर इतिहास में चले, काल के विपथगामी चक्र-नेमि को उखाड़ कर जिन्होंने उसे अपने चिदाकाश में गाड़ दिया, और सम्पूर्ण सृष्टि को हिंसा के दुश्चक्र से मुक्त कर जो उसे अपनी जाज्वल्य चेतना से सम्यक् दिशा में मोड़ गये, उन्हें अपने सृजन द्वारा मैं साम्प्रदायिकता के मुर्दा कारागार से मुक्त करूँगा। एक अनिर्वार पुकार ने मुझे बेचैन कर दिया कि जिस परम पुरुष ने, प्राणि-मात्र को अपनी नियति का स्वयम-प्रकाश विधाता और निर्माता बनाने के लिए जड़त्व के अगम्य अन्धकारों में उतर जाना कुबूल किया, और महाकाल के गर्भ में खो जाने तक का खतरा उठा लिया, उस त्रिलोक और त्रिकाल के शाश्वत चक्रेश्वर को समय के मलबों में से खोद निकाल कर, जीवन की महाधारा में उसे यथास्थान प्रतिष्ठित करना होगा। विश्वेश्वर महावीर के सच्चे और चिर जीवन्त व्यक्तित्व को सृजन द्वारा अनावृत करके, आज के स्वातंत्र्य-कामी जगत् के सामने, उनकी एक सही अस्मिता और पहचान प्रकट करनी होगी। ___इसी पुकार के प्रत्युत्तर के रूप में यह उपन्यास प्रस्तुत हुआ है । एक विशुद्ध कृतिकार की बेचैन और बेरोक ऊर्जा में से ही महावीर की यह 'सम्भवामि युगेयुगे' व्यक्तिमत्ता अवतीर्ण हुई है। जैनागमों में और इतिहास में महावीर के व्यक्तित्व की एक बहुत धुंधली रूप-रेखा (कंटूर) ही हाथ आती है। इतिहास में महावीर को लेकर आज भी जितनी भ्रान्तियाँ मौजूद हैं , उतनी शायद ही उस कोटि के किसी महापुरुष के बारे में हो। दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के ग्रंथों में तो महावीर-जीवन के उपादान लगभग नहींवत् ही मिलते हैं। तत्कालीन इतिहास की पृष्ठ-भूमि और श्वेताम्बर आगमों में उपलब्ध महावीर-जीवन की पौराणिक गाथा ही एकमात्र वे स्रोत हैं, जिनसे मैं अपने सृजन के लिए, किसी क़दर मूर्त आधार प्राप्त कर सका हूँ। शेष में तो यहाँ प्रस्तुत महावीर अन्ततः एक कलाकार के अन्तःसाक्षात्कार (विज़न) में से ही प्रतिफलित और प्रकाशित हुए हैं। इस किताब को लिखने के दौरान बार-बार मैंने जैसे खुली आँखों देखा है, मानो साक्षात् हिमवान आर्यावर्त की धरती पर चल रहा है । और उसके हर चरण-पात के साथ सृष्टि के कण-कण में एक मौलिक अतिक्रान्ति घटित हो रही है। जैनों के जड़ीभूत साम्प्रदायिक ढाँचे में ढले, और मन्दिर-मूर्तियों में बन्दी महावीर ये नहीं हैं। और न महज़ इतिहास की तथ्यों और तारीखों से निर्मित Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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