Book Title: Anuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 01
Author(s): Virendrakumar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 391
________________ र जंगल को जिन टाइपिस्ट मित्रों ने रात-दिन अविश्रान्त शब्दों के इस श्रम करके सुन्दर प्रेस कॉपी में परिणत कर दिया, उसका मूल्य शब्दों और रुपयों से नहीं चुकाया जा सकता । नई दुनिया प्रेस, इन्दौर, के व्यवस्थापक और सारे ही श्रमिक बन्धुओं ने इस ग्रंथ के मुद्रण को सविशेष स्नेह और लगन से संजोया है। उनका हृदय से आभारी हूँ । "" मेरी छोटी बहन मयूरी इस रचना के पीछे एक अकम्प दीप - शिखा की तरह खड़ी है। माँ जाने कितने रूपों में, जाने कब अचानक हमारे पास आ कर खड़ी हो जाती है, सो कौन बता सकता है । 'भगवती चन्दनबाला के प्रभामण्डल की एक किरण मेरी द्वार-देहरी पर औचक ही आ खड़ी हुई है । उसे प्रणाम करता हूँ । फिर अन्तिम रूप से निवेदन है, कि इस कृति में स्वयम् श्रीभगवान ने ही अपनी जीवन लीला का युगानुरूप गान किया हैं । आप ही वे यहाँ अपनपौ प्रकट हुए हैं। इस पर मैं अपने कर्तृत्व की मुहर कैसे लगा सकता हूँ । हमारे युग के प्रति उनके इस परम अनुगृही दान को, उन्हीं के श्रीचरणों में समर्पित करता हूँ । अनन्त चतुर्दशी ३० सितम्बर, १९७४ ३७ : Jain Educationa International गोविन्द निवास, सरोजिनी रोड ; विले पारले (पश्चिम) ; बम्बई -५६ चीरकुमार For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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