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और एक हद के आगे महज कलात्मक घुमाव - फिरावों, रचना-कौशलों और शिल्प-प्रयोगों में उलझने के लिए हमारे पास धैर्य और वक्त नहीं है । हमें तलाश है एक ऐसे केन्द्रीय व्यक्तित्व की, एक ऐसे शलाका-पुरुष की, जो इतिहास की विकृत बुनियादों और घमासान चौराहों पर, सीधा एक अति
ता महाशक्ति का विस्फोट कर दे । जो अपने व्यक्तित्व की शलाका पर अपने काल को माप दे, और निर्विकल्प विचार की ऐसी जलती शलाखें सीधे-सीधे हमारे सामने फेंके कि जो एक बारगी ही तमाम जड़-ज़र्जर ढाँचों को भस्मसात् कर दें, और स्वस्थ अस्तित्व की एक अचूक नयी बुनियाद डालें ऐसे मौक़े पर सपाट बयानी की नहीं जाती, वह आपोआप अनिवार्य होती है । एक विप्लवी विचारधारा का सीधा विस्फोट इस घड़ी टाला नहीं जा सकता । बल्कि वही कारगर हो सकता है ।
'हमारी सत्ता इस क्षण अधर में थरथरा रही है, और हम अपने ही भीतर की किसी परात्पर महाशक्ति से जवाब तलब कर रहे हैं । हमारे वश का कुछ भी नहीं रह गया है । मानवीय बुद्धि और कतृत्व के तमाम औज़ार और हथियार नाकाम हो चुके हैं। तब हमें अपने ही भीतर के किसी ऐसी उत्तीर्ण अतिमानव की तलाश है, जो हम सबकी पुंजीभूत शक्ति और परम ज्ञान का विग्रह हो, और जो हमारे मामलात में बरबस हस्तक्षेप करके, उन्हें किसी बुनियादी रोशनी में सुलझा दे, और हमारी जिन्दगी और इतिहास को एक नया मोड़ दे दे ।
ऐसे ही किसी बेरोक तक़ाज़े ने मेरे भीतर भी काम किया है, और उसी का प्रतिफलन है यह रचना । अनुत्तर - योगी महावीर, मेरी उसी बेचैन पुकार के उत्तर में एक बहुआयामी महासत्ता के रूप में व्यक्तित्वमान हुए हैं। हमारे मौजूदा जीवन-जगत और चेतना के हर आयाम पर तीखे प्रश्न जल रहे हैं, और उन्हीं का अमोघ उत्तर देते-से वे सामने आये हैं । इसीसे इस कृति को मैं एक व्यक्तित्व - प्रधान विचार - उपन्यास कहने की हिमाकत भी कर सकता हूँ ।
इस मुकाम पर शिल्प का प्रश्न उठ सकता है । कोई भी समर्थ और ' मौलिक रचनाकार, काव्य- शास्त्र पढ़ कर महाकाव्य नहीं रच सकता । वह तो
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